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________________ ४२ चित्त और मन विकास नहीं होता। भाषा के साथ ही सभ्यता और संस्कृति का विकास होता है । भाषा हमारे विकास और विचार-संप्रेषण का सशक्त माध्यम है। मन का प्रत्येक कार्य भाषा के द्वारा संपादित होता है। उसका एक भी कार्य ऐसा नहीं है, जिसमें भाषा का योग न हो। इस दृष्टि से भाषा और मन गहरे जुड़े हुए हैं। मन पर यदि भाषा और शब्द का प्रभाव होता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। शब्द पूरे आकाश में फैले हए हैं। जैन तत्त्व-चिन्तकों ने हजारों-हजारों वर्षों पूर्व शब्द विषयक जो सूक्ष्म जानकारियां दीं, विज्ञान आज उन्हें प्रमाणित कर रहा है। ध्वनि के प्रकार ध्वनि दो प्रकार की होती है- शब्द ध्वनि और श्रवणातीत ध्वनि । हम शब्द को सुनते हैं । यह है शब्द ध्वनि । एक सेकेण्ड में शब्द के न्यूनतम बीस प्रकम्पन होते हैं और अधिकतम बीस हजार प्रकम्पन होते हैं । शब्द ध्वनि को सुनने के माध्यम हैं--कान । वे एक सेकेण्ड में बीस प्रकम्पन सुन सकते हैं। यह उनके सुनने की सीमा है। यदि सुनने की शक्ति अधिक होती तो आदमी पागल हो जाता । हमारे चारों ओर भयंकर कोलाहल हो रहा है, तुमुल हो रहा है पर हम कुछेक शब्द ही सुन पा रहे हैं । वे भी हमें प्रिय नहीं लगते और यदि सारे शब्द हम सुनने लग जाते तो न जाने क्या हो जाता । ध्वनि : प्रतिध्वनि श्रवणातीत ध्वनि को हम सुन नहीं पाते । पर इसका भी प्रभाव पड़ता है। सारा प्रभाव होता है प्रकम्पनों का। शब्द ध्वनि के प्रकम्पन हैं तो शब्दातीत ध्वनि के भी प्रकम्पन हैं। वे प्रकम्पन प्रभावित करते हैं। हम पूरा जीवन प्रकम्पनों के आधार पर जी रहे हैं । हर बात की तरंग है। बिना तरंग के कोई बात ही नहीं होती। जैन दर्शन और वेदान्त दर्शन में प्रकम्पन की बहत चर्चा मिलती है। वक्ता बोलता है और हमें प्रतीत होता है कि हम उसके शब्द को सुन रहे हैं। यह भ्रान्ति है । हम शब्द को नहीं सुन पाते, शब्द की प्रतिध्वनि को सुनते हैं। जैसे ही शब्द उच्चरित होते हैं, भाषा की तरंगें पूरे आकाश में फैल जाती हैं। उन तरंगों के प्रकम्पन आते हैं और तब हम उनको सुन पाते हैं। हम प्रतिध्वनि को सुनते हैं । कोई भी श्रोता किसी भी वक्ता की मूल शब्द-ध्वनि को नहीं सुनता, प्रतिध्वनि को सुनता है। दो मान्यताएं दिगम्बर मानते हैं-तीर्थकर नहीं बोलते । श्वेताम्बर मानते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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