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ध्वनि का मन पर प्रभाव
एक मीटिंग हो रही थी। एक वक्ता उठा । उसने कहा- मैं जो कहना चाहता हूं, उसे यदि आप जानते हैं तो मुझे बोलने की जरूरत नहीं है और यदि नहीं जानते हैं तो मैं बोलकर क्या करूंगा, आप समझेंगे नहीं। वह बिना बोले बैठ गया ।
शब्दों का मन पर अचूक प्रभाव होता है । यह बात दाल-रोटी की भांति मानी हुई बात है ।
शब्द का प्रभाव दिमाग और मन पर होता है । बच्चा भी इसका अपवाद नहीं है । एक चार वर्ष का बच्चा मां के साथ दर्शन करने आया । मां ने कुछ कह दिया । बच्चा तत्काल गुस्से में तिलमिला उठा और मां को मुक्कों से पीटने लगा । मैंने कहा- बच्चे को बहुत गुस्सा आता है ? मां बोली- 'महाराज ! जन्म से ही यह गुस्सैल है । कुछ भी सहन नहीं कर पाता । यदि इसे कुछ कह दिया जाए तो फिर भगवान ही बचाए ।'
मन और भाषा
जैन दर्शन में यह बात मानी जाती है कि वास्तव में मन और भाषा दो नहीं हैं । आज का मनोविज्ञान भी मानता है-मन और भाषा परस्पर इतने जुड़े हुए हैं कि इनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता | जैन पारिभाषिक शब्द है-- पर्याप्ति । पर्याप्तियां छह हैं, कहीं कहीं पांच होती हैं । जहां भाषा पर्याप्ति और मन पर्याप्ति अलग-अलग होती हैं, वहां पर्याप्तियों की संख्या छह होती हैं और जहां ये दोनों भाषा और मन एक होती हैं, वहां पर्याप्तियां पांच होती हैं । एक बात पर हम गहरा ध्यान दें । मन का काम है— स्मृति, चिंतन और कल्पना करना । क्या स्मृति चिन्तन और कल्पना बिना भाषा के सहयोग से हो सकती है ? जहां स्मृति है, वहां भाषा है। जहां चिन्तन है, वहां भाषा है और जहां कल्पना है वहां भाषा है ।
विचार संप्रेषण का माध्यम
समाज के लिए भाषा अनिवार्य अंग है । मनुष्य ने भाषा का बहुत विकास किया है, शब्दों का बहुत निर्माण किया है । आज भाषा के सैकड़ों शब्दकोश हैं। पशुओं में भी भाषा होती है पर वहां शब्द सीमित होते हैं । कहीं दो-चार शब्द तो कहीं दस-बीस शब्द । सभी पशुओं के शब्दों का चयन कर लिया जाए तो भी एक शब्दकोश नहीं बन सकता। पशुओं में भाषा का
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