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________________ मन की अवस्थाएं ३५. सकते । योग की भाषा में आचार्यों ने इसे समरसी भाव और सभापति कहा है | जहां ध्येय और ध्यांता की एकात्मकता संध जाती है वहां सुलीन की भूमिका प्राप्त होती है | पतंजलि ने इसका कुछ भिन्नता से प्रतिपादन किया है । विक्षेप में मन का उतार-चढ़ाव रहता है, वहां आनन्द नहीं है । यातायात में एक प्रकार के थोड़े-से आनन्द का अनुभव होता है, जो भौतिकता में नहीं मिलता । श्लिष्ट में बहु-आनन्द मिलता है । सुलीन की भूमिका में बहुतर यानी परमानन्द की अनुभूति होती है । सुख की अनुभूति का प्रश्न कुछ लोग पदार्थों में सुख और आनन्द की कल्पना करते हैं । वास्तव में पदार्थ के बिना जो आत्मा में आनन्द की अनुभूति होती है, वह पदार्थों से नहीं होती । हमारी साधना के द्वारा सुख की ग्रन्थि आहत हो जाती है । एक व्यक्ति ने बताया -- जब मैं ध्यान करने बैठता हूं तो दो दिन तक बैठा रहता हूं। किसी स्थिति के कारण बीच में छोड़ना पड़ता है तो दुःख होता है । चोट-सी लगती है | खाने में आनन्द आ सकता है पर बिना खाए-पीए भी आनन्द आ - सकता है, यह कल्पता करना भी कठिन है । अन्तर् हृदय में आनन्द का सागर हिलोरें ले रहा है, लेकिन अज्ञान के कारण हम वंचित रह जाते हैं । मन की छह भूमिकाएं आचार्य श्री तुलसी ने मनोविकास की छह भूमिकाओं का उल्लेख किया है १. मूढ २. विक्षिप्त ३. यातायात ४. श्लिष्ट ५. सुलीन ६. निरुद्ध मूढ मूढ अवस्था में आसक्ति और द्वेष बहुत प्रबल होते हैं । मूढ अवस्था का मन बाह्य जगत् और परिस्थिति का प्रतिबिम्ब लेता रहता है इसलिए वह एकाग्र होने की दिशा में गति नहीं कर पाता । विक्षिप्त मूढ अवस्था की भूमिका पार कर लेने पर व्यक्ति के मन में भीतर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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