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________________ चित्त और मन जब मन को साधने का प्रयत्न करते हैं तब उसकी चंचलता समझने का अवसर मिलता है। यातायात जो चंचलता आती है, वह बुराई नहीं है, विकास की ओर प्रयाण का पहला शुभ शकून है । चंचलता का विस्फोट या उभार आए तो भी घबराएं नहीं, अन्तिम दिनों में एकाग्रता की अनुभूति होने लगेगी। दीप बुझता है, उस समय अधिक टिमटिमाता है। चींटी के पंख आने का अर्थ है-मृत्यु की निकटता। विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस से कहा 'गुरुदेव ! वासना का इतना उभार आ रहा है कि मैं अपने को संभालने में अक्षम हैं।' गुरु ने उत्तर दिया- 'बहुत अच्छा है।' विवेकानन्द -'अच्छा कैसे है, जबकि मन चंचल हो रहा है ?' परमहंस--'तुम्हारी वासना मिट रही है। जो जमा पड़ा हुआ था वह निकल रहा है। ध्यान में चंचलता आए, उसे छोड़ दो, दबाने का यत्न मत करो। निवारितं बहु चंचलं भवति, अनिवारितं स्वयमेव शान्तिमेती।' रोकने का प्रयत्न मत करो। तुम देखते रहो-वह कितना तेज दौड़ रहा है ? तीव्र गति में दौड़ने वाली मोटर को ब्रेक लगाने से क्या होगा? १०५ डिग्री बुखार को एक साथ उतारने में खतरा ही होता है । मन की गति को मत रोको । मन को खुला छोड़ दो। बच्चे को बांधने से न हम काम कर सकेगे और न वह टिक सकेगा। बच्चे को खुला छोड़ने से हम भी काम कर सकेंगे। मन को न, रोकने पर हम देखेंगे, कभी वह चंचल है तो कभी शांत । यातायात की भूमिका में मन कभी स्थिर रहता है और कभी चंचल । रिलष्ट श्लिष्ट का अर्थ है-चिपकना । मन को ध्येय के साथ चिपकाना यानी उसके साथ संबंध स्थापित करना । अभ्यास करते-करते मन इन भूमिका पर आ जाता है। सुलीन सुलीन का अर्थ है-ध्येय में लीन हो जाना। जैसे दूध में चीनी घल जाती है। घुलने से चीनी का अस्तित्व समाप्त नहीं होता अपितु उसमें विलीन हो जाता है। दूध में मिठास चीनी का अस्तित्व बताता है। इस भूमिका में मन ध्येय में लीन हो जाता है, मन को ध्येय से भिन्न नहीं देख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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