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________________ ३२ चित्त और मन धारणा और धारणा के बाद ध्यान । केन्द्रीकृत मन की जो सघन अवस्था है, वह है ध्यान, जहां कि मन स्थिर हो जाता है, जम जाता है । लम्बे समय तक मन जम जाता है, वह है मेडिटेशन, ध्यान । सबसे पहले अवधान का अभ्यास करना होगा। मन की वह स्थिति पैदा करनी होगी जो अवधान कर सके । मन बहुत ही गतिशील तत्त्व है। मन का काम ही है गति को बनाए रखना । वास्तव में यह उसका स्वभाव नहीं है। हम बिलकुल विपरीत दिशा में जा रहे हैं। स्रोत के साथ चलना बहुत स्वभाविक है। हर कोई स्रोत के साथ चल सकता है। नौका भी चलती है तो स्रोत के साथ चलती है। स्रोत के प्रतिकूल चलना बहुत ही कठिन काम है । जो स्रोत के प्रतिकूल चल सके, वह साधक है, साधना है। जो मन चंचल है, गतिशील है, उसे केन्द्रित करना, अवहित करना या अमन बनाना-यह सारी विपरीत क्रिया है यानी जो मन का स्वभाव नहीं है, उस स्वभाव में मन को ले जाना और स्थापित कर देना । चेतना का एक बिन्दु है मन ___ मन हमारी चेतना का एक बिन्दु है। हमारी प्रत्येक प्रवृत्ति, प्रत्येक कार्य में मन का योग रहता है । मन को जानना एक अर्थ में स्वयं को जानना है । मन की गतिविधि से अवगत रहना जागरूकता का लक्षण है। मन से परिचय मिल जाने से व्यक्ति लाभान्वित हो सकता है। मन फीता नहीं है जिसे खींचकर बढ़ाया जा सके और उसका विकास किया जा सके। मन की क्षमता, योग्यता और कार्य-संपादन की पद्धति में विकास किया जा सकता है, यदि उससे परिचित हो जाएं। हम अज्ञान के कारण मन को नहीं जान पाते है। मन इन्द्रिय और आत्म-चेतना का मध्यवर्ती है । इन्द्रियों का सम्पर्क बाहरी जगत् से है और चेतना का केन्द्र अन्तर्जगत् है। मन दोनों (इन्द्रिय और चेतना) के द्वारा प्राप्त तत्त्व का विश्लेषण करने वाला या भोग करने वाला है। मनोविज्ञान मानसिक विकास के दो साधन मानता है-वंशानुक्रम और वातावरण । पहला साधन स्वाभाविक क्षमता या प्राकृतिक देन है। दूसरा अभ्यास से होता है। प्रातिभ और अभ्यास निष्पन्न कवि दो प्रकार के होते हैं-प्रातिभ और अभ्यास निष्पन्न । काव्य के क्षेत्र में हम देखते हैं-कोई व्यक्ति ऐसा होता है, जो आठ-दस वर्ष की अवस्था में भी महान कवि बन जाता है। कुछ कवि ऐसे होते हैं, जो अभ्यास के पथ पर चलते-चलते महान् बनते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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