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________________ मन की अवस्थाएं योग की भाषा में मन की तीन अवस्थाएं हैं-अवधान, एकाग्रता या धारणा और ध्यान । मनोविज्ञान भी इसी का संवादी विचार प्रस्तुत करता है। उसमें भी तीन अवस्थाएं मानी गई हैं-अटेन्शन, कान्सन्ट्रेशन और मेडिटेशन । अवधान, केन्द्रीकरण और ध्यान-ये मन की तीन अवस्थाएं हैं। मानसिक क्रियाएं इन तीन अवस्थाओं से गुजरती हैं। अवधान पहली अवस्था है-अवधान, अटेंशन । यह मन की वह क्रिया है, जहां हम मन को किसी वस्तु के प्रति व्याप्त करते हैं, लगाते हैं। जो मन घूमता रहता है, उसे एक वस्तु के प्रति लगा देते हैं । वस्तु के प्रति मन को व्याप्त करना, मन को सचेत करना, चैतन्यवान् बनाना-यह है अवधान की अवस्था । इसमें पदार्थ के साथ मन का सम्बन्ध जुड़ जाता है। हम कहते हैं--सावधान हो जाओ। इसका मतलब है कि एक कार्य के प्रति दत्तचित्त हो जाओ । जो करना है, चित्त को उसमें लगा दो। अवधान जैसे बाह्य वस्तु के प्रति होता है, वैसे ही कभी-कभी अपने मूल स्वरूप के प्रति भी होता है । जब मौलिक स्वरूप के प्रति अवधान होता है, उस स्थिति में बाह्य के प्रति अवधान नहीं होता। मन का अवधान अपने पति हो जाता है। अपने प्रति मन का अवधान होना एक विशेष प्रकार की स्थिति है। इस स्थिति में ही प्रज्ञा का उदय होता है, आन्तरिक चेतना प्रकट होती है। धारणा मन की दूसरी अवस्था है-कान्सन्ट्रेशन । योग की भाषा में एकाग्रता या धारणा। यह अवधान से अगली अवस्था है। जिसमें हमने अवधान लगाया, मन का पदार्थ के साथ सम्बन्ध स्थापित किया, उसी में केन्द्रित हो जाना। जो मन चारों ओर भटक रहा था, अनेक वस्तुओं पर जा रहा था, उसे सब वस्तुओं से हटाकर उसी एक वस्तु में केन्द्रित कर देना कान्सन्ट्रेशन है, एकाग्रता या धारण है । यह मन की धारणावस्था है। ध्यान से पहले धारणा करनी होती है। ध्यान मन की तीसरी अवस्था है-मेडिटेशन, ध्यान । अवधान के बाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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