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________________ मन का स्वरूप यह बहुत सूक्ष्म बात है । हमें लगता है उनमें कोई संबंध-सूत्र नहीं है, परंतु वे अतीत के साथ जुड़े हुए होते हैं । असंबद्ध विचार क्यों व्यक्ति अतीत के साथ जुड़ा हुआ है। उसने अतीत में कब, क्या, कैसे सोचा, किस प्रकार का आचरण और व्यवहार किया-इन सबके साथ वह जुड़ा हुआ है । किन्तु ये तथ्य इतने अज्ञात और सूक्ष्म हैं कि उनका संबंध-सूत्र खोजा नहीं जा सकता। हर व्यक्ति खोज नहीं सकता। इसलिए ऐसा लगता है-जो विचारों की श्रृंखला चल रही है, वह असंबद्ध है। स्थूलदृष्टि से ऐसा मान लिया जाता है । वास्तव में सारे विचार संबद्ध होते हैं। क्योंकि वे सब सहेतुक होते हैं, निर्हेतुक नहीं होते । अज्ञात होने के कारण उन्हें पकड़ नहीं सकते इसलिए हम उन्हें असंबद्ध मान लेते हैं। यह हमारा माना हुआ सत्य है, वास्तविक सत्य नहीं है । संबद्ध विचार दूसरे प्रकार का विचार होता है संबद्ध विचार। आदमी किसी एक प्रश्न या समस्या पर विचार प्रारंभ करता है । वह उसी समस्या पर चिंतन करता चला जाता है। जब समस्या को हल करने के लिए शृंखलाबद्ध, तर्कपूर्ण और व्यवस्थित चिन्तन चलता है तब हमें लगता है-ये संबद्ध विचार एक दिशा में चल रहे हैं। हमें सब कुछ पूर्ण संबद्ध प्रतीत होता है। संबद्ध विचार अधिकांशतः वर्तमान की समस्या, घटना या परिस्थिति के आधार पर चलता है। वर्तमान में जैसी परिस्थिति, घटना और समस्या होती है, हम उसके आधार पर चिंतन करते हैं । उसमें अतीत का अंश थोड़ा होता है । अतीत उससे जुड़ा अवश्य होता है पर उसकी मात्रा अल्प होती है। असंबद्ध विचार में अतीत का गहरा प्रभाव होता है इसलिए इन दोनों असंबद्ध विचार और संबद्ध विचार में भेद करना प्रासंगिक हो जाता है। ध्यान और स्मृति हम प्रेक्षा ध्यान के संदर्भ में विचार करें। एक प्रश्न है-स्मृति कल्पना और विचार हमारे लिए क्यों जरूरी हैं। यह भी जरूरी है कि ये हमारे ध्यान में साधक बनें, बाधक न बनें । किसी सीमा तक ये तीनों साधक बन सकते हैं, पर बहुत हद तक ये बाधक ही हैं। जब व्यक्ति ध्यान प्रारंभ करता है तब वह सबसे पहले स्मृति का प्रयोग करता है । वह जो भी आलंबन लेता है, उस आलंबन की स्मृति जरूरी है । यदि स्मृति दुर्बल है तो वह ध्यान भी नहीं कर पाता। ध्यान का प्रारंभिक अर्थ है-सतत स्मृति । सतत स्मृति ध्यान है । एकाग्रता का अर्थ ही है सतत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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