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________________ २६ चित्त और मन क्रिया का दूसरा क्रम चालू होता है। जो विषय गृहीत हैं, उनका निर्धारण करना, विश्लेषण करना, यह सारा कार्य मन करता है। एक दुःखी व्यक्ति है। उसने जो कार्य किया है, उसको बाहरी जगत् तक पहुंचा देना विचार का काम है। हमारे भीतर जो संस्कार, वृत्तियां और इच्छाएं हैं, उनका संयोजन करना, नियोजन करना, वियोजन करना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के विषय में, एक वस्तु से दूसरी वस्तु के बारे में, एक स्थान या काल से दूसरे स्थान या काल के विषय मेंइन सारे संबंधों में आना-जाना, इनसे संपर्क स्थापित करना, ये सारी मानसिक क्रियाएं विचार कहलाती हैं। मन का कार्य _ विचार के बिना एक-दूसरे के साथ संपर्क स्थापित नहीं हो सकता। इन्द्रियों का काम संपर्क स्थापित करना नहीं है। आंख ने इस कमरे के पंखे को देखा और कुछ ही समय पश्चात् दूसरे कमरे के पंखे को देखा। आंख यह नहीं सोच सकती कि यह वैसा ही पंखा है, जो पहले वाले कमरे में है । आंख का काम है आकार को पकड़ लेना। पंखे का तुलनात्मक अध्ययन करना, यह पंखा वैसा ही है या भिन्न है, इसका निर्णय करना मन का काम है, आंख का काम नहीं है। संपर्क का सूत्र है मन । यहां ठंड है, वहां गर्म है यह निर्णय इन्द्रिय का नहीं, मन का होता है । गतिशील होना, सारे संबंधों को इधर-उधर ले जाना, परस्पर जोड़ना, संयोजन-वियोजन करना—यह है मन का कार्य । विचार के दो प्रकार स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, मनन और तर्क-ये सब मन के कार्य हैं, मानसिक क्रियाएं हैं। पहले विचार और फिर चिन्तन । विचार दो प्रकार का बन जाता है--संभव और असंभव । आदमी बैठा है। उसके मन में एक के बाद दूसरा विचार आता रहता है। प्रश्न होता है क्यों आते हैं ये विचार ? कोई प्रयोजन नहीं है उनका। न उनमें कोई संबंध खोजा जा सकता है। पहले यह विचार आया और फिर यह विचार आया। दोनों में क्या संबंध है ? यह ज्ञात नहीं होता। उच्छंखलता से, बिना किसी पौर्वापर्य या संबंधों के विचारों का प्रवाह चलता रहता है । इसका स्पष्ट अर्थ है कि हमारे भीतर इच्छाओं संस्कारों और वृत्तियों का गहरा जमाव है। वे वृत्तियां निरंतर स्पंदित होती रहती हैं। हमारे कर्म शरीर में, सूक्ष्म शरीर में इतने अधिक स्पंदन होते रहते हैं कि वे कभी रुकते नहीं । कर्मशरीर के सूक्ष्म स्पंदन हमारे स्थूल शरीर को प्रभावित करते हैं। उसी के कारण विचार का सिलसिला चालू रहता है, कभी नहीं रुकता। उनमें संबंध-सूत्र खोजा जा सकता है, किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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