________________
मन का स्वरूप
२५
कल्पना और संकल्प
भारतीय साहित्य में तीन शब्द बहुत प्रचलित हैं-कामधेनु, कल्पवृक्ष और चिन्तामणि रत्न। कामधेनु और कल्पवृक्ष-ये कल्पना के ही सशक्त रूप हैं । वास्तव में कामधेनु या कल्पवृक्ष का अस्तित्व ही नहीं होता। जिस व्यक्ति की कल्पना सधन और सुदृढ़ बन जाती है, वह संकल्प का रूप ले लेती है तब उसमें अपूर्व शक्ति का प्रादुर्भाव हो जाता है। वह संकल्प उस व्यक्ति के लिए कामधेनु या कल्पवृक्ष बन जाता है अर्थात् उसके लिए सब कुछ बन जाता है।
संकल्प में बहुत बड़ी शक्ति होती है। जिस प्रकार का संकल्प होता है, परमाणुओं को भी उसी रूप में संगठित होने के लिए बाध्य होना पड़ता है। आकाश में बादल नहीं है। आदमी ने संकल्प किया। वह सघन और सुदृढ़ हुआ। उस स्थिति में परमाणुओं को बादल के रूप में बदलना होता है। यह इच्छाशक्ति का निदर्शन है कि वह परमाणुओं का संयोजन या वियोजन करने में सक्षम है। संकल्प कल्पना का ही एक रूप है। कल्पना और विकल्प
कल्पना का दूसरा रूप है—विकल्प। यह मान लेना कि मैं सुखी हूं, मैं दुःखी हूं-यह कल्पना ही तो है । वास्तव में सुख-दुःख अनुभव के साथ जुड़ता है । कल्पना के साथ ही सुख और दुःख की तीव्रता आती है। यदि आदमी ने दृढ़ता से यह मान लेता है कि कुछ भी पीड़ा नहीं है, तो वास्तव में उसका कष्ट पचीस प्रतिशत कम हो जाएगा। थोड़ी पीड़ा भी संकल्प के साथ अधिक तीव्र बन जाती है। यह पीड़ा की तीव्रता और मन्दता विकल्प के आधार पर होती है । जिस प्रकार की विकल्पना होती है, उसी प्रकार की अनुभूति होने लग जाती है।
यह टेबल है, यह घड़ी है -ये सारे हमारे विकल्प हैं । वास्तव में ये सब परमाणुओं के संगठनमात्र हैं। ये सभी पदार्थ परमाणुओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं किन्तु हमने एक आकार के साथ अपनी कल्पना जोड़ दी और उसको एक नाम दे दिया। यह विकल्प है। इस प्रकार कल्पना के तीन रूप बन जाते हैं-- कल्पना, संकल्प और विकल्प । विचार
तीसरा तत्त्व है-विचार । यह मन की क्रिया है, जो निरंतर चलती रहती है। आदमी निरंतर चिन्तन करता रहता है, सोचता रहता है। शब्द का व्यवहरण उसका माध्यम है। शब्द भी विचार है । विचार का अर्थ हैविचरण करना, गतिशील होना। इन्द्रियां अपने-अपने प्रतिनियत विषयों का ग्रहण करती हैं और वे सारे ग्रहण हमारे मस्तिष्क में अंकित होते रहते हैं । अब
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
ww