SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ चित्त ओर मन विभिन्न प्रकार से कर लिया गया और 'नरसिंह' का रूप बन गया । इसी प्रकार 'आग ठंडी है ।' यह एक कल्पना है । इसमें भी दो बातें ज्ञात हैं । हम आग को भी जानते हैं और ठंड को भी जानते हैं। हमने एकत्र संयोजन कर दिया और 'आग ठंडी है' यह हमारी आ गया । हैं इच्छा : कल्पना इस प्रकार दो या अनेक ज्ञात तत्त्वों का संयोजन कर देना कल्पना है । स्वप्न में भी ऐसा ही होता है । इस दृष्टि से स्वप्न और कल्पना - दोनों बहुत निकट आ जाते हैं । इसलिए जो आदमी बहुत कल्पनाएं करता है उसको हम 'दिवास्वप्न' से अभिहित करते हैं । दिवास्वप्न का अर्थ हैआकाशी उड़ान । आदमी दिन में भी स्वप्न देखता है अर्थात् वह लंबी-चौड़ी कल्पनाएं करता रहता है । आदमी स्वाभाविक और अस्वाभाविक — दोनों प्रकार की कल्पनाएं करता रहता है । वह अनेक चीजों का संयोजन कर देता है । स्वप्न में हम विचित्र प्रकार के आकार देखते हैं । उन आकृतियों में आंख किसी की होती है तो टांग किसी की होती है । इसी प्रकार कल्पना के -आधार पर भी विचित्र आकार बना लिए जाते हैं, जिनमें कोई संगति प्रतीत नहीं होती । पर यह एक तथ्य है कि कल्पना में जिस प्रकार का आकार रूप, रंग आया, उससे यह पता चल जाता है कि इच्छा क्या चाहती है और किस रूप में प्रगट होना चाहती है । कल्पना के आधार पर इच्छा या आन्तरिक अभिलाषा को जाना जा सकता है । Jain Education International 1 । दोनों हमें दोनों का कल्पना में कल्पना की सार्थकता कल्पना का बहुत बड़ा उपयोग है । आदमी कल्पना करता है । वह कल्पना प्रेरक बनती है । वह कल्पना हमारे पुरुषार्थ और उद्यम की निमित्त बनती है । कल्पना के आधार पर ही आदमी पुरुषार्थं करता है और उस कल्पना को साकार बनाता है । विश्व में जितने भी आविष्कार होते हैं, पहले उन सबकी कल्पना की जाती है । आदमी ने एक बार कल्पना की थी कि आकाश में उड़ा जा सकता है। उसने उस दिशा में प्रयत्न प्रारंभ किया और एक दिन वह आकाश में उड़ने लगा । प्रत्येक आविष्कार का प्रारूप हमारी कल्पना में बनता है और वह धीरे-धीरे आकार ग्रहण करता है । कल्पना को आकार तक पहुंचने में लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है । वह प्रक्रिया योजना कहलाती है । योजना कल्पना का ही यह पूरक तत्त्व है । कल्पना, योजना और फिर उस प्रकार के विचारों, चिन्तनों और व्यवहारों या साधनों का संघटन करना होता है । वह कल्पना जब क्रियान्वित होती है, आकार लेती है तब नया तथ्य संसार के सामने आ जाता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy