________________
मन का स्वरूप
दोनों हैं । स्मृति और पहचान में प्रत्यक्ष और परोक्ष - दोनों होते हैं । मानस ज्ञान : चार विकल्प
___ मन, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिवोध-ये पांच शब्द हैं। जो हम सामने देखते हैं, नियतरूप में देखते हैं, उस बोध का नाम है 'अभिनिबोध' । इस बोध की दो शर्ते हैं। एक है-सामने होना और दूसरी है-नियत होना । सभी इन्द्रियों के कार्य नियत होते हैं। आंख का काम है देखना और कान का काम है सुनना। ये नियत हैं। इन दो शर्तों के साथ जो ज्ञान होता है उसका नाम है-अभिनिबोध । इसके चार रूप बनते हैं--मति, स्मृति, संज्ञा और चिन्ता। मति का अर्थ है मनन, विचार । स्मृति का अर्थ हैयाद होना । संज्ञा का अर्थ है-प्रत्यभिज्ञा, पहचान । चिन्ता का अर्थ हैतर्कपूर्ण चिन्तन, व्याप्ति या संबंधों की खोज।
इन्द्रियज्ञान या मानसज्ञान के भी ये चार विकल्प बन जाते हैं। प्राणी का लक्षण
प्राणी का स्वाभाविक लक्षण है---इच्छा। इस लक्षण के द्वारा जीव को जाना जा सकता है। जिसमें चेतना नहीं होती, वह अजीव होता है। चेतना प्राणी का स्वरूपगत लक्षण है। इच्छा उसका व्यावहारिक लक्षण है। जिसमें इच्छा होती है, वह होता है जीव और जिसमें इच्छा नहीं होती, वह होता है अजीव । इसका हेतु यह है कि चेतना अभिव्यक्त होती है इच्छा के माध्यम से । एक चींटी चलती है। उसे देखते ही हम जान लेते हैं कि वह जीव है। उसकी गति का हेतु है उसकी स्वतंत्र इच्छा। उस इच्छा के माध्यम से वह स्वतंत्र रूप में गति करती है। उसी के माध्यम से उसका जीवन अभिव्यक्त होता है । यदि उसमें इच्छा नहीं होती तो उसमें गति नहीं होती और तब सहसा यह ज्ञात नहीं होता कि तिनके का टुकड़ा पड़ा है या चींटी है। आकार चेतन में भी होता है और अवचेतन में भी होता है। चेतन को पहचान होती है उसकी गति के द्वारा, प्रवृत्ति के द्वारा। गति और प्रवृत्ति इच्छापूर्वक ही हो सकती है इसलिए जीव का व्यवहारिक लक्षण हैइच्छा । कल्पना
इच्छा और अभिलाषा को अभिव्यक्ति कल्पना है। प्राणी में इच्छा होती है और वह मनोरथ या कल्पना के रूप में प्रगट होती है। कल्पना में कोई नया ज्ञान नहीं होता, केवल ज्ञान का संयोजन होता है। जो बातें ज्ञात हैं, उनका विभिन्न प्रकार से संयोजन होता है। भारतीय साहित्य में नरसिंह की कल्पना की गई। इसमें मुंह सिंह का होता है और धड़ मनुष्य का। सिंह भी जाना हुआ है और आदमी भी जाना हुआ है। किन्तु दोनों का संयोजन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org