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________________ चित्त और मन चिंतन और आचारण का उसमें प्रतिबिम्ब होता है, अंकन होता है। जब-जब वह अंकन प्रगट होता है तब व्यक्तित्व की नई-नई चेतनाएं उद्भूत होती हैं, वे अच्छी भी होती हैं और बुरी भी। उस सूक्ष्म शरीर में केवल दमित वासनाएं ही नहीं हैं, अच्छे संकार भी हैं । यदि केवल इच्छाएं और वासनाएं ही होती तो व्यक्तित्व का रूप अत्यन्त भद्दा हो जाता। उसमें कभी सौन्दर्य नहीं आ पाता। व्यक्ति के जीवन में सौन्दर्य के लिए भी बहुत बड़ा अवकाश है। उसमें अच्छा आचरण भी है, अच्छा व्यवहार भी है। हमारे व्यक्तित्व में जितनी अच्छायां हैं, जितना सौन्दर्य है, वह दमित वासनाओं का परिणाम नहीं है । सूक्ष्म शरीर की व्याख्या में ये दोनों तथ्य बहुत स्पष्ट हो जाते हैं कि उसमें हमारा अच्छा और बुरा आचरण, अच्छा और बुरा चिन्तन-दोनों अंवित होते हैं, संचित होते हैं। जब ये संचित संस्कार प्रगट होते हैं तब अच्छाई भी प्रगट होती है और बुराई भी प्रगट होती है। दोनों की अपनी सीमाएं हैं, रेखाएं हैं। क्रान्ति का स्वर वर्तमान वैज्ञानिकों और मानसशास्त्रियों ने बहुत बड़ी क्रांति की। उन्होंने कहा-'चेतन मन के स्तर पर या भौतिक स्तर पर जो घटित हो रहा है वह अवचेतन मन का प्रतिबिम्ब है।' यह भौतिक जगत् में बहुत बड़ी घटना है, जो समूचे सिद्धांत को बदल देती है। जहां केवल शरीर या स्थूल मन के आधार पर सारी अवधारणाएं चलती हैं, उस स्थिति में यह प्रतिपादन सामने आया कि व्यक्ति जो स्वप्न लेता है, व्यक्ति के मन में जो वासनाएं उभरती हैं, वे सब दमित वासनाएं हैं। कर्म और अवचेतन मन ___ मन के दो स्तर हैं-चेतन मन का स्तर और अवचेतन मन का स्तर । अवचेतन मन का स्तर अत्यन्त शक्तिशाली है। चेतन मन उससे कुछ अवदान प्राप्त कर अपना कार्य चलाता है । जितनी घटनाएं घटित होती हैं, हमारे जितने आचरण हैं, उन सबका स्रोत है-अवचेतन मन । कर्मशास्त्र ने हजारों वर्ष पूर्व इस विषय का प्रतिपादन किया था कि व्यक्ति जो कुछ करता है, उसके पीछे कर्म की प्रेरणा होती है । 'कम्मुणा जायई'-कर्म से ही होता है । यही प्रेरक तत्त्व है। हमारे सभी आचरणों का स्रोत है कर्म । जो कर्म संचित हैं, जो कर्म अस्तित्व में हैं, सत्ता में हैं और जब वे उदय में आते हैं, जब उनका विपाक होता है तब नाना प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं । सारा का सारा व्यक्तित्व उनके आधार पर चलता है। कर्मशास्त्र की भाषा में जिसे हम कर्मों का विपाक कहते हैं, उसे ही मनोविज्ञान की भाषा में दमित इच्छाओं का उभार कहते हैं। दोनों का आशय तो निकट है ही, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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