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________________ आभामंडल ३२७ शुक्ल-लेश्या का आभामण्डल बनता है तब सारी बातें समाप्त हो जाती हैं । बाहर का संक्रमण बन्द हो जाता है। इस स्थिति में ही व्यक्ति अकेला बनता है। समूह में रहते हुए भी वह अकेला बन जाता है। इस संक्रमण के अगत् में जीने वाला कोई व्यक्ति अकेला नहीं बन सकता। वह भले ही अकेला रहे पर इन सूक्ष्म परमाणुओं के लिए अकेला नहीं रह जाता। जो व्यक्ति तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या से आभामंडल का निर्माण कर लेता है, वह हजारों-हजारों की भीड़ में रहता हुआ भी सचमुच अकेला बन जाता है । जब आभामंडल या भावमंडल शक्तिशाली बन जाता है तब व्यक्ति बाहरी प्रभाव से प्रभावित नहीं होता। लेश्या : नामकरण का आधार __ मनुष्य में जैसी लेश्या होती है वैसा ही उसका आभामंडल विशुद्ध बनता है और उसकी मलिनता से आभामंडल मलिन बनता है। इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य के आभामंडल भी छह प्रकार के बन जाते हैं। छह वर्ण वाले पुद्गल-परमाणु मनुष्य की विचारधारा को प्रभावित करते हैं । उनके आधार पर मनुष्य की विचारधारा भी छह रंगी बन जाती है। जो पुद्गल-परमाणु मनुष्य की विचारधारा को प्रभावित करते हैं और जिन पुद्गल-परमाणुओं से आभामंडल निर्मित होते हैं उनमें वर्ण, गध, रस और स्पर्श-ये चारों होते हैं। इनमें वर्ण मनुष्य के शरीर और मन को अधिक प्रभावित करता है इसीलिए वर्ण के आधार पर लेश्याओं के नामकरण प्रस्तुत किए गए हैं। आभामंडल विचित्रता का कारण वर्ण अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के होते हैं। काला वर्ण अच्छा भी होता है और बुरा भी होता है । प्रशस्त भी होता है, अप्रशस्त भी होता है । मनोज्ञ भी होता है, अमनोज्ञ भी होता है। श्वेत वर्ण भी अच्छा-बुरा, प्रशस्तअप्रशस्त या मनोज्ञ-अमनोज्ञ होता है। कृष्ण, नील और कापोत लेश्या के आभामंडल में होने वाले कृष्ण, नील और कापोत वर्ण अप्रशस्त होते हैं। तेजस्, पद्म और शुक्ल लेश्या के आभामंडल में होने वाले रक्त, पीत और श्वेत वर्ण प्रशस्त होते हैं। भावधारा की विचित्रता के आधार पर आभामंडल के वर्ण भी विचित्र बन जाते हैं। वर्ण की विचित्रता भावधारा की विचित्रता का बोध कराने में सक्षम होती है। हम भावधारा को साक्षात् नहीं देख पाते, नहीं जान पाते, वर्गों की विचित्रता के आधार पर भावधारा का अनुमान कर सकते हैं। वर्ष : व्यक्तित्व की पहचान आभामंडल में काले रंग की प्रधानता हो तो मानना चाहिए व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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