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आभामंडल
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महावीर ने लेश्या के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। यह बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है । प्रत्येक व्यक्ति के पास एक आभामंडल और एक भावमंडल होता है । भावमंडल हमारी चेतना है और चेतना के साथ-साथ जो एक पौद्गलिक संस्थान है, उसे आभामंडल कहते हैं । चेतना हमारे तंजस शरीर को सक्रिय बनाती है । जब यह विद्युत्-शरीर सक्रिय होता है तब वह किरणों का विकिरण करता है । ये विकिरण व्यक्ति के शरीर के चारों ओर वलयाकार घेरा बना लेते हैं । यह आभामंडल है । जैसा भावमंडल होता है वैसा ही आभामंडल बनता है । भावमंडल विशुद्ध होगा तो आभामंडल भी विशुद्ध होगा । भावमंडल मलिन होगा तो आभामंडल भी मलिन होगा, धब्बों वाला होगा । वह काले रंग का होगा, विकृत होगा, अन्धकारमय होगा । सारे चमकीले वर्णं समाप्त हो जाएंगे। हम भावधारा, परिणामधारा को बदलकर आभामंडल को बदल सकते हैं ।
लेश्या और आभामंडल
संकल्प शक्ति का प्रयोग, एकाग्रता की शक्ति का प्रयोग और इच्छाशक्ति का प्रयोग — जब ये तीनों प्रयोग एक साथ मिलते हैं तब लेश्या का रूपान्तरण हो जाता है । जब लेश्या बदलती है तब आभामंडल भी बदलता है । हमारे अन्तःकरण में सूक्ष्म शरीर के भीतर छह लेश्याएं हैं, भाव का मंडल है और उसका संवादी अंग है आभामंडल | यह हमारे शरीर के चारों ओर गोलाकार रूप में होता है । जैसी लेश्या, वैसा आभामंडल । जैसा भावमंडल वैसा आभामंडल | भाव बदलता है, साथ-साथ में आभामंडल बदल जाता है । जब भाव उदात्त होता है, पवित्र होता है तब आभामंडल के रंग बदल जाते हैं । जब भाव खराब होता है तब आभामंडल का रंग काला हो जाता है । जब भाव अच्छा होता है तब आभामंडल का रंग पीला हो जाता है, लाल या सफेद हो जाता है । सारे धब्बे समाप्त हो जाते हैं। दोनों साथ-साथ चलते हैं । भावमंडल हमारी शक्ति को विकसित करता है और आभामंडल बाहर से आने वाली बाधाओं को रोकता है ।
जब तेजोलेश्या का आभामण्डल बनता है तब विचारों के लिए दरवाजे बन्द हो जाते हैं । कोई बाहरी विचार भीतर नहीं जा सकता । जब पद्मलेश्या का आभामण्डल बनता है तब बुरे विचार अन्दर प्रवेश नहीं पा सकते | जब
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