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________________ लेश्या और भाव ३१६ भी काले रंग के अनुरूप बन जाते हैं । वैसा बन जाता है स्फटिक के सामने जैसा रंग आता है, वह वैसा ही दिखने लग जाता है । स्फटिक का अपना रंग नहीं होता । उसके सामने काला रंग आता है तो वह काला, पीला रंग आता है तो वह पीला, लालरंग आता है तो वह लाल और नीला रंग आता है तो वह नीला बन जाता है । आत्मा के परिणामों का अपना कोई रंग नहीं होता । सामने जिस रंग के परमाणु आते हैं । आत्मा का परिणाम उस रंग में बदल जाता है । वैसी ही हमारी भाव-लेश्या हो जाती है । रंग : व्यापकता एक व्यक्ति मरता है । वह अगले जन्म में पैदा होता है। पूछा गया - वह अगले जन्म में क्या होगा ? कैसा होगा ? उत्तर मिला - जिस लेश्या में मरेगा, उसी लेश्या में उत्पन्न होगा । जिस रंग में मरेगा, उसी रंग में पैदा होगा । ज्ञान और ध्यान, कर्म और जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म – सबके साथ रंगों का सम्बन्ध है । स्थूल व्यक्तित्व का कोई विषय ऐसा नहीं है, जिसके - साथ रंग का सम्बन्ध न हो । अंगुली हिलती है । उसका भी अपना रंग है । एक अंगुली का नाम है —तर्जनी । उसका काम है तर्जना देना । उसे ही तर्जनी क्यों कहा गया ? दूसरी अंगुली को तर्जनी क्यों नहीं कहा गया उसे तर्जनी इसलिए कहा गया कि उसका रंग तर्जना देने वाला है । हमारी अंगुलियों का, हमारे घुटने और एड़ी का, हमारे पैर तक के भाग रंग, हमारे कटिभाग का रंग और शरीर के ऊपरी भाग का रंग अलग-अलग है । सारा रंग ही रंग है। जो भी हम खाते हैं, वह आहार पर्याप्ति कोष में जाता है । आहार पर्याप्ति की कोशिकाएं सबसे पहले उन परमाणुओं को रंग और -रूप में बदलती हैं, उनको रंग देती हैं । सारे व्यक्तित्व को लेश्या और रंग प्रभावित किए हुए हैं । शक्तिशाली-तंत्र चेतना का एक स्तर है - भाव तंत्र - लेश्या तंत्र | हमारे जीवन की - समूची प्रणाली भावतंत्र से संचालित होती है । आत्म-स्पंदन बाहर आते हैं और भाव का एक संस्थान बनता है । वह ऐसा संस्थान होता है कि जीव के स्पंदन की तरंगे एक आकार लेती हैं और एक भाव के रूप में बदल जाती हैं। उससे हमारे समूचे कर्म तंत्र का संचालन होता है । हमारा बाहरी व्यक्तित्व वही होता है, जिस प्रकार की लेश्या होती है, जो भाव होता है । जैसा अन्तर् का भाव होता है, जैसी अन्तर् की लेश्या होती है, वैसा होता है हमारा बाहर का व्यक्तित्व | हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाला सबसे - शक्तिशाली तन्त्र है-भाव-तन्त्र या लेश्या - तन्त्र । हम लेश्या को बदलें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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