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________________ चित्त और मन हुआ। रंगे हुए कपड़े को काषायिक कपड़ा कहा जाता है। भीतर में बड़ा रंग का संस्थान है-कषाय का तंत्र । वहां जो कुछ भी जाता है, वह रंगीन होकर ही जाता है । वहां बिना रंग की कोई वस्तु नहीं है । जो कुछ है वह सारा रंगा हुआ है। रंग ही रंग है। जो कुछ भी आता है वह रंग कर आता है। जितने कर्म के परमाणु हैं वे सारे के सारे रंग के परमाणु हैं । लेश्या-तंत्र एक आदमी हिंसा का विचार करता है तो काले रंग के परमाणुओं को आकर्षित करता है। एक आदमी असत्य बोलता है तो गंदले काले रंग के परमाणुओं को आकर्षित करता है। एक आदमी क्रोध करता है तो मलिन लाल रंग के परमाणु आकर्षित होते हैं। रंग दो प्रकार के होते हैं। एक हैप्रकाशमान रंग और एक है-गन्दला रंग। एक आदमी माया का व्यवहार करता है तो गन्दले नीले रंग के परमाणु आकर्षित करता है। जो आदमी बुरे कार्य करता है, अठारह पाप-स्थानों का सेवन करता है, वह गन्दा काला, गन्दा नीला, गन्दा लाल, गन्दा पीला, गन्दा सफेद-पांचों गन्दे रंगों के परमाणु आकर्षित करता है और वे परमाणु भीतर के कषाय-तंत्र तक पहुंच जाते हैं। उनकों पहुंचाने वाली है-लेश्या । संपर्क-सूत्र का सारा कार्य लेश्या के हाथ में है। फिर वहां से पक-पकाकर जब विपाक होता है, पूरे रंग कर जब वे बाहर पाते हैं तब लेश्या उन्हें संभालती है और बाहर तक पहुंचा देती है, विपाक तक पहुंचा देती है। वे विपाक हमारे भिन्न-भिन्न अन्तःस्रावी ग्रन्थिों में आकर भिन्न-भिन्न प्रकार की वेदनाएं और प्रतिक्रियाएं प्रकट करते हैं । यह रंग का सबसे बड़ा संस्थान है-लेश्या-तंत्र । जीवन-तंत्र का आधार हमारा सारा जीवन-तंत्र रंगों के आधार पर चलता है। आज के मनोवैज्ञानिकों और वैज्ञानिकों ने यह खोज की है कि व्यक्ति के अन्तर-मन को, अवचेतन मन को और मस्तिष्क को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला तत्त्व है रंग । रंग हमारे समूचे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है । यह बहुत बडी सचाई है । हम सबसे ज्यादा रंग से प्रभावित होते हैं। रस का भी प्रभाव होता है, गन्ध और स्पर्श का भी प्रभाव होता है, किन्तु रंग जितना प्रभाव डालता है, उतना कोई नहीं डालता। हमारे जीवन का संबंध रंग से है। हमारी मृत्यु का संबंध रंग से है। हमारे पुनर्जन्म का संबंध रंग से है। हमारे भावों और विचारों का संबंध रंग से है। जिस प्रकार के रंग हम ग्रहण करते हैं, वैसे ही हमारे भाव बन जाते हैं। जब हम हिंसा का विचार करते हैं तब काले रंग के परमाणु आकर्षित होते हैं और हमारी आत्मा के परिणाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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