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________________ लेश्या और भाव ३१७ और भविष्य में भी नहीं बनाया जा सकेगा। प्राणी और पदार्थ में यह मौलिक अन्तर है कि पदार्थ की ओरा निश्चित होती है। उसमें परिवर्तन करने वाला नियामक तत्त्व नहीं होता। प्राणी की ओरा बदलती रहती है। उसमें कभी काला, कभी लाल, कभी पीला, कभी नीला और कभी सफेद रंग उभर आता है । आदमी के भावों के अनुरूप रंग बदलते रहते हैं। आदमी गुस्से में होता है तो लाल रंग का ओरा बन जाता है। आदमी शांत होता है तो सफेद रंग का ओरा बन जाता है। ओरा प्राणी का लक्षण है किन्तु इसके साथ इतना और जोड़ देना चाहिए कि परिवर्तनशील मोरा प्राणी का लक्षण है, लेश्या प्राणी का लक्षण है । लेश्या: एक कारखाना ___ लेश्या का बहुत बड़ा कारखाना है। कषाय की तरंगें और कषाय की शुद्धि होने पर आनेवाली चैतन्य की तरंगें-इन सब तरंगों को भाव के सांचे में ढालना, भाव के रूप में इनका निर्माण करना और उन्हें विचार तक, कर्म तक, क्रिया तक पहुंचा देना—यह इसका काम है। यह सबसे बड़ा संस्थान है। सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच में यदि कोई संपर्क-सूत्र है तो वह वास्तव में लेश्या है । लेश्या ही संपर्क सूत्र है। मन, वचन और काया की प्रवृत्ति के द्वारा जो कुछ बाहर से आता है, वह कच्चा माल होता है। लेश्या उसे लेती है और कषाय तक पहुंचा देती है। वह कच्चा माल कषाय के संस्थान तक पहुंच जाता है। यह लेश्या का काम है। फिर भीतर से वह कच्चा माल पक्का बनकर आता है। जो कर्म जाता है वह फिर विपाक आता है। भीतरी स्राव जो रसायन बनकर आता है उसे लेश्या अध्यवसाय से लेकर हमारे सारे स्थूल तंत्र तक, मस्तिष्क और अतःस्रावी ग्रन्थियों तक पहुंचा देती है। यदि स्थूल शरीर में लेश्या के प्रतिनिधि संस्थानों को खोजें, उनके बिक्री संस्थानों को खोजें तो जितनी अंतःस्रावी ग्रन्थियां हैं, वे सारी लेश्या की प्रतिनिधि संस्थाएं हैं, बिक्री संस्थान हैं। उनके सेल्स मैनेजर वहां बैठे हैं, अच्छे ढंग से उनके माल की सप्लाई कर रहे हैं। कषाय तंत्र कर्मों के स्राव लेश्या के द्वारा भीतर से आते हैं वे, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों को उत्तेजित करते हैं । वे स्राव सारे बाहरी व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं । सारा बाहरी व्यक्तित्व उससे बदल जाता है। जो भी माल आता है, वह रंगीन आता है। भीतर जाता है वह भी रंगीन जाता है। बाहर आता है वह भी रंगीन आता है । कषाय शब्द का चुनाव भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। कषाय का अर्थ होता है-रंगा हुआ। लाल रंग से रंगा हुआ या केवल रंगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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