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________________ चित्त और मन व्यक्ति के भाव और आचरण का है। पदार्थ का लक्षण है-रश्मियों को विकीर्ण करना । हर पदार्थ से रश्मियां निकलती हैं। रश्मियां ओरा बन जाती हैं । एक ईंट की रश्मियां भी ओरा बन जाती हैं। ऐसी स्थिति में हम यह कैसे माने कि जिसमें लेश्या होती है, ओरा होती है, वह जीव होता है और जिसमें लेश्या नहीं होती, ओरा नहीं होती, वह अजीव होता है ? यह लक्षण घटित नहीं होता । इसमें दोष है। ओरा जीव और अजीव-दोनों में होती है। हम इसे समझें। यह सच है कि पदार्थ में, अजीव में भी ओरा होती है किन्तु उसकी ओरा निश्चित होती है, वह बदलती नहीं। जीव की ओरा अनिश्चित होती है, बदलती रहती है। कभी उसकी ओरा अच्छी होती है और कभी बुरी होती है। कभी उसके रंग अच्छे हो जाते हैं और कभी बुरे हो जाते हैं और यह इसलिए होता है कि उसको बदलने वाला लेश्या-तंत्र, भाव-तंत्र भीतर विद्यमान है। पदार्थ में कोरा विकिरण होता है किंतु उस विकिरण को बदलने वाला, परावर्तित करने वाला कोई तत्त्व भीतर नहीं है। लेश्या के दो प्रकार प्राणी की ओरा का नियामक तत्त्व है लेश्या । लेश्या के दो भेद हैं -द्रव्य-लेश्या और भाव-लेश्या, पौद्गलिक-लेश्या और आत्मिक-लेश्या। वह निरंतर बदलती रहती है। पदार्थ में यह परिवर्तन नहीं होता। पदार्थ के बारे में एक वैज्ञानिक निश्चित बात कह सकता है, निश्चित नियम बना सकता है। उनके सार्वभौम नियमों की व्याख्या की जा सकती है किन्तु प्राणी के बारे में कोई निश्चित नियम या व्याख्या नहीं की जा सकती। एक सामियाना बंधा है । वह इच्छा हो तो छाया करे, इच्छा न हो तो न करे, ऐसा कभी नहीं होता। यदि यह बंधा है तो निश्चित ही छाया करेगा किन्तु प्राणी के लिए यह घटित नहीं होता। वह जब इच्छा होती है तब छाया में बैठ जाता है और जब इच्छा होती है तब धूप में बैठ जाता है। गर्मी लगती है तो छाया में आ जाता है और सर्दी लगती है तो धूप में चला जाता है। प्राणी को यह स्वतंत्रता है । अ-प्राणी की यह स्वतंत्रता नहीं होती। रेलगाड़ी के लिए यह सोचना संभव नहीं है कि वह पटरी पर इतने मील चली है, अब सीधे रास्ते से चले किन्तु एक छोटी-सी चींटी के लिए यह संभव है। मौलिक अंतर - प्राणी की जो विशेषता है, वह है उसकी विचार की स्वतंत्रता । विचार का संस्थान, भाव का संस्थान इतना बड़ा है कि उसके लिए कोई नियम नहीं बनाया जा सकता, उसकी कोई निश्चित व्याख्या नहीं की जा सकती। मनोवैज्ञानिकों के हजारों-हजारों प्रयोगों और अन्वेषणों के बावजूद सभी प्राणियों के लिए कोई सार्वभौम नियम नहीं बनाया जा सका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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