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मन की अवधारणा
जाता है । हम आज्ञा-चक्र या भू-चक्र को विकसित कर लेते हैं, तब हमारी आनन्दानुभूति का मार्ग बदल जाता है। मानसशास्त्र के अनुसार काम का उदात्तीकरण होता है। योगशास्त्र के अनुसार काम-चक्र का ऊर्वीकरण होता है। इस ऊर्वीकरण से हमारे मन का सहज आनन्द के साथ सम्पर्क स्थापित हो जाता है। सुखानुभूति के द्वार को बन्द कर कोई आदमी ब्रह्मचारी नहीं बन सकता। किन्तु आनन्दानुभूति के द्वार को खोल कर ही ब्रह्मचारी बन सकता है। चेतन : अचेतन
हमारे भीतर असंख्य शब्द, रूप, गंध कैद किए हुए पड़े हैं। हजारोंलाखों वर्षों से यह क्रम चल रहा है। बाहर से एक बार बंद कर देते हैं किन्तु जब ये भीतर में संग्रहीत शब्द रूप उभरते हैं तब आदमी विस्मय से भर जाता है । जो व्यक्ति ध्यान से पूर्व स्थिर था, चंचल नहीं था, वह एकाग्र होते ही इतना चंचल हो जाता है कि जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते । हम ध्यान दें। शब्द कहां से आ रहे हैं ? बाहर का दरवाजा बन्द है । बाहर से कोई प्रवेश नहीं कर पाता। जब कोई बाहर से प्रवेश करता था, तब भीतर का सोया पड़ा था। जब बाहर से कोई नहीं आ रहा है तब भीतर वाले को जागने का अवसर मिल जाता है। जब चेतन मन जागता है तब अवचेतन मन सोया रहता है। मनोविज्ञान की भाषा में कहा जाता हैजब कोन्शियस माइंड काम करता है तब सबकॉन्शियस माइंड काम नहीं करता । स्थानांग सूत्र का कथन है-जब संयमी जागता है तब उसके शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श-ये पांच सोए रहते हैं । जब संयमी सोता है तब ये पांचों जाग जाते हैं । जब चेतन मन जागता है तब भीतर का तंत्र सोया रहता है। जब हम इस चेतन मन को सुला देते हैं तब भीतरी मन जाग जाता है । जब बाहरी मन जागता रहता है तब भीतर का भंडार भरता जाता है और एक दिन ऐसा आ सकता है कि एक भीषण विस्फोट होता है और आदमी उसे झेल नहीं पाता। जब चेतन मन जागृत रहता है तब हमें समस्याओं का अनुभव ही नहीं होता। वास्तव में जब हम ध्यान-साधना के द्वारा चेतन मन को सुला देते हैं तब हमें ज्ञात होता है कि भीतर क्या-क्या है। जब तक सफाई का प्रयत्न नहीं किया जाता तब तक कुछ भी पता नहीं लगता। शोधन की प्रक्रिया
जब शोधन की प्रक्रिया चलती है तब शब्द जागते हैं, भावनाएं जागती हैं । ऐसे शब्द और ऐसी भावनाएं जागती हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जो आदमी भला और सज्जन दिखायी देता रहा है, वह भी अचानक
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