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________________ ३११ लेश्या और भाव नहीं हैं । न हाथ हैं, न पैर हैं, न मस्तिष्क है, न सुषुम्ना है और न सुषुम्नाशीषं है । जानने का कोई माध्यम नहीं है । सारा ज्ञान अध्यवसाय से होता है । यह बिना माध्यम और अवयवों से रहित ज्ञान है । यह स्थूल शरीर के बिना होने वाले ज्ञान की सीमा रेखा है । इससे परे है स्थूल शरीर से होने वाले ज्ञान की सीमा रेखा । अध्यवसाय तंत्र के स्पंदन आगे बढ़ते हैं और वे स्थूल शरीर में उभरते हैं। जब वे स्थूल शरीर में उतरते हैं तब शरीर के साथ आत्मा का स्पंदन जुड़ता है। वहां सबसे पहले चित्त तंत्र का निर्माण होता है । स्थूल में आत्मा का पहला पडाव है चित्त का निर्माण | चित्त का निर्माण मस्तिष्क के माध्यम से होता है । ज्ञान स्थूल शरीर के अवयवों के माध्यम से अभिव्यक्त होने लगता है और वह अवयवों का सहयोग लेकर ही अभिव्यक्त हो पाता है । असंख्य हैं अध्यवसाय चित्त-तंत्र केवल ज्ञेय को जानने का साधन मात्र है । अध्यवसाय की अनेक रश्मियां फूटती हैं । उसके अनेक स्पंदन अनेक दिशाओं में आगे बढ़ते हैं । 'असंखेज्जा अज्झवसाणठाणा' 'अध्यवसाय के असंख्य स्थान हैं ।' लोक के जितने आकाश-प्रदेश हैं उतने ही हमारे अध्यवसाय हैं । लोक के प्रदेश असंख्य हैं और अध्यवसाय भी असंख्य हैं । वे चित्त पर उतरते हैं । उनकी एक धारा चलती है । वह है भाव की धारा - लेश्या । अध्यवसाय की एक धारा जो रंग के परमाणुओं से प्रभावित होती है, रंग के परमाणुओं के साथ जुड़कर भावों का निर्माण करती है, वह है हमारा लेश्या तंत्र या भावतंत्र । इसके द्वारा ही सारे भाव निर्मित होते हैं । जितने भी अच्छे या बुरे भाव हैं, वे सारे लेश्या - तंत्र के द्वारा निर्मित होते हैं । अध्यवसाय प्रभावित करते हैं नाड़ीसंस्थान को, मस्तिष्क को और जब ये लेश्या की दिशा में आगे बढ़ते हैं तब ये प्रभावित करते हैं हमारी ग्रन्थियों को और उनके माध्यम से हमारे सारे शरीर-तंत्र को । भाव - तंत्र लेश्या की एक परिभाषा है— कर्म निर्झर । लेश्या कर्म का झरना है, कर्म का प्रवाह है। कर्म के प्रवाह, जो प्रवाहित होकर बाहर आते हैं, वे ग्रन्थियों के माध्यम से बाहर आते हैं । ये हैं ग्रन्थियों के स्राव, ग्रंथियों के रसायन और रसानुबंध यानी कर्म का अनुभाग बंध | अनुभाग बंध भी रसायन है । कर्म का रसायन इन ग्रन्थियों के माध्यम से बाहर आकर हमारे समूचे तंत्र को प्रभावित करता है। यह चित्त-तंत्र और लेश्या तंत्र हमारे क्रिया तंत्र को प्रभावित करता है | क्रिया- तंत्र के तीन अंग हैं—मन, वचन और शरीर । क्रिया तंत्र कां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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