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________________ ३१२ चित्त और मन एक अंग है-मन । वह एक पुर्जा है। इसका कार्य है-काम करना। मन का कार्य ज्ञान करना नहीं है । मन का कार्य कर्म को बांधना नहीं है । मन का कार्य कर्म को तोड़ना भी नहीं है। मन का काम है ऊपर से मिलने वाले निर्देशों का पालन करना, उनको क्रियान्वित करना। इसी प्रकार वचन भी निर्देशों की क्रियन्विति के साधन हैं, ज्ञान के साधन नहीं हैं। ज्ञान-तंत्र चित्त-तंत्र तक समाप्त हो जाता है। भाव-तंत्र लेश्या-तंत्र तक समाप्त हो जाता है । इन दोनों के निर्देशों को क्रियान्वित करने के लिए क्रिया-तंत्र सक्रिय होता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षण का निष्कर्ष मनोवैज्ञानिक परीक्षण का निष्कर्ष है कि ध्यान एक विषय पर चार सेकण्ड से अधिक नहीं टिकता। ध्यान का एक सिद्धान्त इसे स्वीकार नही करता। उसके अनुसार एक ही विषय पर ध्यान ५-१० घण्टा या अधिक भी स्थिर रह सकता। किंतु जिसने ध्यान का अभ्यास ही नहीं किया है, उसका ध्यान विचलित हो सकता है, जल्दी-जल्दी बदल सकता है। इस दृष्टि से मनोविज्ञान के ध्यान-विचलन के सिद्धान्त से हमारी अस्वीकृति नहीं है । जो ध्यान करने का अभ्यस्त नहीं होता उसका ध्यान चार-पांच सेकण्ड से अधिक एक स्थान पर नहीं टिक सकता। संभव है प्रत्येक सेकण्ड में वह बदलता रहे। इससे भी कम समय में परिवर्तन हो सकता है। मन की गति बड़ी तीव्र है । न जाने एक सेकेण्ड में वह कितनी बार कहां-कहां चला जाता है। यह अंकन गलत नहीं है किन्तु कोई भी अंकन या परीक्षण अंतिम नहीं हो सकता । प्रेक्षा करते-करते हमारी ऐसी स्थिति का निर्माण होता है कि हम एक विषय पर लगातार अवधान करने में सफल हो सकते हैं। अवधान स्थायी बन जाता है। यह मनोविज्ञान के परीक्षण का विषय नहीं बन सकता । इसका कारण भी है। जब तक लेश्या का सिद्धान्त स्पष्ट नहीं होता तब तक ध्यान-विचलन का सिद्धान्त भी आगे नहीं बढ़ सकता। अध्यवसाय के माधार पर भाव परिवर्तन होता है और भाव परिवर्तन के आधार पर विचार परिवर्तन होता है। विचार परिवर्तन का अंकन हो सकता है भाव परिवर्तन का अंकन नहीं किया जा सकता। विचार का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, स्वतंत्र मूल्य नहीं है। सारे विचार भावतंत्र के आधार पर पैदा होते हैं और विलीन होते हैं । विचार-तंत्र, भाव-तंत्र और अध्यवसाय-तंत्र-ये तीनों जुड़े हुए हैं। मध्यवसाय से भाव पैदा होते हैं और भाव से विचार पैदा होते हैं । यदि भाव स्थिर बनते हैं, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या स्थिर होती है तो विचार अपने आप स्थिर बन जाएंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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