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________________ चित्त और मन अपना-अपना कागज देखा। पांच के कागज खाली थे। छठे के कागज पर कुछ लिखा था। वह व्यक्ति कमरे में गया, एक पौधे को उखाड़ा, पैरों से रौंदा और उसे नष्ट कर डाला। वेकस्टर को भी पता नहीं था कि छहों व्यक्तियों में से किसने यह काम किया है। अब वेकस्टर ने एक-एक कर छहों व्यक्तियों को कमरे में जाने के लिए कहा। कमरे में जो एक पौधा बचा था, उस पर पोलीग्राफ लगा दिया गया। पहला व्यक्ति गया। पौधे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। दूसरा, तीसरा, चोथा और पांचवां व्यक्ति गया, पौधे ने कोई प्रतिक्रिया अंकित नहीं की। वह शांत था, सहज-सरल था । ज्योंहि पौधे को उखाड़ फेंकने वाला व्यक्ति कमरे में प्रविष्ट हुआ, सारा पौधा कांप उठा। उसके कंपन पोलीग्राफ पर अंकित होने लगे। उस ग्राफ को देखकर वैज्ञानिक ने जान लिया कि इस व्यक्ति ने ही पौधे को नष्ट किया है। मनुष्य नहीं जान सका इस बात को और पौधा जान गया, पहचान गया। कितना तीव्र संवेदन और कितनी तेज पहचान होती है वनस्पति के जीव में । ज्ञान का स्रोत वैज्ञानिक वेस्टर ने दूसरा प्रयोग किया, पौधों पर पोलीग्राफ लगा हुआ था। वह एक प्रयोग कर रहा था। प्रयोग करते-करते उसके मन में एक बात आई। उसने मन ही मन सोचा-दियासलाई मंगवाकर इस पौधे को जला डालूं। जैसे ही उसके मन में यह बात आई, ग्राफ की सुई घूमने लगी। अग्नि का ग्राफ उभर आया । दूसरा ग्राफ भी वैसा ही हुआ । वह वहाँ से उठा । कमरे में दियासलाई लाने गया। उसका मन बदल गया। उसने सोचा-मैं पौधे को नहीं जलाऊंगा। यह सोचकर वह पौधे के पास गया। ग्राफ की सुई स्थिर थी। कोई ग्राफ नहीं आया। ___ मनुष्य भी दूसरे के मनोभावों को इस प्रकार नहीं जान पाता, वनस्पति का जीव वह ज्ञान कर लेता है। एक प्रश्न आता है कि जब वनस्पति में याँ एक इन्द्रिय वाले जीवों में मन नहीं होता तो फिर वे इतना सूक्ष्म ज्ञान कैसे कर लेते हैं ? हम इस सचाई को समझें-मन ज्ञान का साधन नहीं है। वास्तव में मन जानने का साधन नहीं है। जहां से ज्ञान का स्रोत प्रवाहित होता है, वह है अध्यवसाय । चित्त निर्माण : माध्यम हम चैतन्य और चित्त के क्रम को समझें। मूल है चैतन्य-आत्मा । उसके चारों ओर है कषाय का तंत्र और उसके बाद आता है अध्यवसाय का तंत्र । स्थूल शरीर से इनका कोई संबंध नहीं रहता। ये केवल कर्म शरीर और तेजस शरीर से ही संबंधित रहते हैं। 'तेजस शरीर सूक्ष्म है और कर्म शरीर उससे भी अधिक सूक्ष्म ।' ये दोनों शरीर हैं पर इनके कोई अवयव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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