________________
बाधि : व्याधि : उपाधि
कैसे उपलब्ध होगी ?
मार्ग दो : चुनाव का स्वातन्त्र्य
समाधि का जीवन
मनुष्य के सामने दो मार्ग है । वह सोचें – मुझे कौन-सा जीवन जीना है ? व्याधि, आधि और उपाधि का जीवन जीना है या जीना है ? प्रश्न होगा यह कोई चुनाव का प्रश्न है ? क्या कोई व्यक्ति व्याधि का जीवन जीवन जीना चाहेगा ? सहज हो सकता है यह प्रश्न किन्तु इसका उत्तर भी जटिल नहीं है। आदमी चाहता है तब बीमार होता है । आदमी चाहता है तब मानसिक उलझनों में फंसता है, उपाधि से ग्रस्त होता है । अगर वह न चाहे तो कभी बीमार नहीं हो सकता । यह सब चाह पर निर्भर है। कठिन है उस चाह को पकड़ना, कठिन है उस चाह को समझना और देखना । हमारे भीतर बीमारी होने की चाह जागती है और हम बीमार हो जाते हैं। क्या भोजन का असंयम, बहुत खाने की चाह और बीमारी दो हैं ? मन में ज्यादा खाने की चाह जागती है, क्या वह बीमार होने की चाह नहीं हैं ? मन में असंयम की चाह जागती है, क्या वह बीमार होने की चाह नहीं है ? व्यक्ति अति काम, अति भोजन, अति लोभ, अति क्रोध करता है, यह सारी बीमारी की चाह है। हम कैसे भेद-रेखा खींचेंगे कि अति भोजन की चाह, अति स्वाद की चाह, अति लोलुपता की चाह तो है और बीमारी की चाह नहीं है ।
चाह से प्रेरित है चुनाव
व्याधि, अधि और उपाधि से पीड़ित होने का चुनाव कौन करेगा ? किन्तु आदमी यह चुनाव करता है । वह इसलिए करता है कि उसके भीतर चाह मौजूद है । मनुष्य चुनाव करने में सक्षम है इसलिए वह व्याधि, अधि और उपाधि से दूर जाने का चुनाव भी कर सकता है । जब वह व्याधि, अधि और उपाधि से दूर हटकर समाधि का चुनाव करता है तब उसकी सारी जीवन की दिशा बदल जाती है । समाधि कोई अद्भूत वस्तु नहीं है । समाधि कुछ लोगों के लिए नहीं है । समाधि जीवन के शिखर पर पहुंचने के बाद होने वाली घटना नहीं है । समाधि हमारे जीवन की दिशा है । समाधि हमारे जीवन का एक मार्ग है, जीवन की एक पद्धति है । जो इस समझ लेता है, जीवन के विज्ञान को समझ लेता है, वह शान्त, सहज और निर्लिप्त जीवन जीता है। कीचड़ में खिले हुए कमल के पत्ते का जीवन जीता है, जिस पर कीचड़ भी गिरता है, पानी भी गिरता है किन्तु टिकता कुछ भी नहीं, सब कुछ चला जाता है । वह व्यक्ति सूखी भींत का जीवन जीता है, जिस पर सूखी बालू पड़ती है और नीचे गिर जाती है, कोई लेप नहीं लगता ।
1
जीवन की पद्धति को
Jain Education International
२६६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org