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________________ बाधि : व्याधि : उपाधि २९७ व्याधियां निकलती हैं, जमे हुए मल निकलते हैं। जब हम मन को श्वास दर्शन में लगाते हैं तब हम राग-द्वेष से मुक्त क्षणों में जीते हैं। उस समय मुर्छा के दोष, मन के दोष बाहर निकलते हैं। यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। . मनोदैहिक बीमारी प्राचीन ग्रन्थों में बीमारी के दो प्रकार बतलाए गए हैं—आगंतुक बीमारी और कर्मज बीमारी। कोई चोट लगी, यह आगंतुक बीमारी है, कष्ट है । पूर्व संचित संस्कारों से उत्पन्न होने वाली बीमारी कर्मज है । एक होती है मानसिक बीमारी । आज के शरीरशास्त्रियों ने एक बीमारी का उल्लेख किया है । वह है 'साइकोसोमेटिक' । यह शारीरिक और मानसिक बीमारी का द्योतक शब्द है। प्रीचन ग्रन्यों में मानसिक बीमारी को 'आधि' और शारीरिक बीमारी को 'व्याधि' कहा गया है। आज की भाषा में दोनों का संयुक्त नाम है-'साइकोसोमेटिक' अर्थात् 'मनोदैहिक' बीमारी-शरीर और मन की बीमारी। ____ मनोदैहिक बीमारियां बहुत ही जटिल होती हैं। आज का मानव इनसे - ग्रस्त है और उसके कष्ट बढ़ते ही चले जा रहे हैं। योगमनस्कार ने एक महत्त्व की सूचना दी है। उन्होंने लिखा'व्याधि और आधि-ये दोनों प्रकार के रोग मनुष्य की मूर्खता के कारण उत्पन्न होते हैं।' यह बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि मनुष्य के अज्ञान के कारण शारीरिक रोग-व्याधियां होती हैं और मानसिक रोग-आधियां होती हैं। अपने ही अज्ञान के कारण हम इन रोगों को उत्पन्न कर रहे हैं। तनाव मुक्ति का अर्थ मन तनाव से भरा है, भारी है, अशान्त है तो अनेक बीमारियां 'उत्पन्न होंगी । तनाव सारे दु:खों का मूल है। तनाव से मुक्त होने का अर्थ है " कषायों से मुक्त होना क्रोध से मुक्त होना, मान, माया और लोभ से मुक्त होना। तनाव कषायों को उत्तेजित करता है, उत्तेजित कषाय तनाव को उत्तेजित करते है। कषाय से तनाव और तनाव से कषाय-यह चक्र बन जाता है। इस चक्र के बीच में रहता है आदमी। वह सारे दुःखों को झेलता जाता है। सारी आधियां और व्याधियां उसे झकझोरती हैं। वह बेचारा -सहता है। दुःख भोगता है, पीड़ा का अनुभव करता है। तनाव मुक्ति का अर्थ है-दुःख से मुक्ति । चिन्तन की दयनीय स्थिति आज चिन्तन के क्षेत्र में एक दयनीय स्थिति बनी हुई है। आज सब कुछ शरीर की दृष्टि से सोचा जाता है। उसके बाद नम्बर आता है मन का। मन के विषय में बहुत कम सोचा जाता है किन्तु भावात्मक दृष्टि से सोचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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