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________________ २९६ चित्त और मन प्रतिशोध की भावना तीसरी विकृति है-प्रतिशोध की भावना । कुछ लोग इस भावना से पीड़ित हैं। किसी के द्वारा जाने-अनजाने अप्रिय व्यवहार हो जाने पर व्यक्ति में बदले की भावना जागृत हो जाती है। वह सोचता है-"मैं इसका बदला लेकर ही रहूंगा । जब तक बदला नहीं लूंगा तब तक चोटी नहीं बांधूंगा। यह खुली ही रहेगी।" महामंत्री चाणक्य ने यही संकल्प किया था कि जब तक नंद साम्राज्य से बदला नहीं ले लूंगा तब तक मेरी चोटी खुली ही रहेगी, बंधेगी नहीं। चाणक्य ने बदला लेकर ही चोटी बांधी। क्या है पागलपन ईा भी मानसिक विकृति है, एक बीमारी है। दूसरे की प्रगति देखी. और मन में एक सिकुड़न पैदा हो गयी। जब यह होता है तब दूसरे की प्रगति पर दिल जलता है, कुढ़ता है और जल-भुनकर राख हो जाता है। ___इन सारी मानसिक विकृतियों का प्रभाव क्या होता है ? यह एक प्रश्न है । ये मानसिक विकृतियां तनाव पैदा करती हैं। पागलपन से पहले तनाव होता है। मस्तिष्क में जब तक तनाव नहीं होता तब तक पागलपन नहीं आता । तनाव का बिन्दु ही पागलपन है। हमारा मस्तिष्क शांत होना चाहिए । जब उसमें तनाव पैदा होता है, उसके तन्तु बहुत कस जाते हैं तब विकृति पैदा होती है। महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया . मस्तिष्क जब स्वस्थ होता है तब वह दूसरे सारे अंगों को ठीक कर लेता है। वह सारे शरीर का संचालक है। जितने ज्ञानवाही और क्रियावाही स्नायु हैं, उन सबका संचालन मस्तिष्क से होता है। शरीर का पूरा संचालन मस्तिष्क से होता है । यह ऐसा नियंत्रण कक्ष है जो सबका संचालन करता है । इसमें जब थोड़ी-सी विकृति होती है तब शरीर का सारा ढांचा गड़बड़ा जाता है। जब तक मस्तिष्क की चेतना ठीक है, आदमी जीता है। हम इस भ्रांति को दूर करें कि हृदय बंद हो जाने से आदमी मर गया। हमारे शरीर का सबसे मूल्यवान् अंग है मस्तिष्क । जब विकृत मन के द्वारा मस्तिष्क में तनाव पैदा होता है तब पूरा शरीर-तंत्र विकारग्रस्त हो जाता है। इस मस्तिष्क की विकृति से बचने के लिए शिथिलीकरण अत्यन्त आवश्यक है। जैसे शरीर का शिथिलीकरण होता है वैसे ही मन की अवस्था का शिथिलीकरण भी होता है। शिथिलीकरण यानि विसर्जन । मूढ़ता का शिथिलीकरण यानि मूढ़ता का विसर्जन । इसका तात्पर्य है कि ऐसी कोई भी विकृति न हो, ऐसी कोई मूर्छा की तरंग न आए, जो मस्तिष्क को विकृत बना दे। दीर्घश्वास प्रेक्षा का प्रयोजन यही है कि शरीर के दोष निकल जाए। इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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