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________________ मन की अवधारणा कर्मशास्त्र का संदर्भ कर्मशास्त्र में हजारों वर्ष पहले इस विषय पर बहुत काम हुआ था । उसके संदर्भ में आज के मनोविज्ञान की समीक्षा करते हैं तो यूंग का मत अधिक संगत प्रतीत होता है । जैन आचार्यों ने कर्मशास्त्र के आधार पर दो प्रणालियां निर्धारित की । एक प्रणाली का नाम है औदयिक प्रणाली, • जिसे मनोविज्ञान की भाषा में 'रिटमुलेशन ऑफ टेन्सन' कहा जा सकता है । यह आवेशों को उत्तेजना देती है। दूसरी है- क्षायोपशमिक प्रणाली, यह उत्तेजना का विलय करती है, उसे शान्त करती है । ओदयिक प्रणाली का प्रवाह और क्षायोपशमिक प्रणाली का प्रवाह निरन्तर बहता रहता है । संदर्भ इच्छा का हम ज्यादा काम लेते हैं चेतन चित्त से । जो इच्छाएं और आकाक्षाएं पैदा होती हैं, वे चेतन चित्त के स्तर पर होती हैं । एक इच्छा के पैदा होने पर हमारे सामने दो विकल्प प्रस्तुत होते हैं • इच्छा को पूर्ण करें १५ • इच्छा का दमन करें । सामान्यतः दो बातें मानी गई हैं, इच्छा पूरी करना या उसका दमन - करना । हर इच्छा को पूरा करें - यह सामाजिक जीवन में संभव नहीं । कई इच्छाएं ऐसी होती हैं, जिनको पूर्ण नहीं किया जा सकता । उनको पूर्ण करना कभी संभव नहीं होता । इच्छा पर एक नियंत्रण है समाज की व्यवस्था का । इच्छा पर एक नियंत्रण है सभ्यता और शिष्टता का । उसका एक सूत्र है- अशिष्ट आचरण नहीं करना चाहिए । कुछ इच्छाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें पूरा भी किया जा सकता हैं । वे पूर्ण हो जाती हैं । एक अपूर्ण इच्छा, जिसको मनोविज्ञान की भाषा में दमित इच्छा कहा जाता है । -इच्छा का दमन कर दिया, उसे पूरा नहीं किया । दमित इच्छा भीतर चली जाती है, अवचेतन में चली जाती है और वह बार-बार उभरती रहती है । - वह सामान्य उपायों से निकलती नहीं, मिटती नहीं । इच्छा : दमन या भोग दमित इच्छाएं, जो अचेतन इच्छाएं बन गईं, अचेतन में चली गई, बार-बार उभरती रहती हैं । प्रश्न है - इच्छा को पूरा करें या उसका दमन करें। पूरा करें, यह संभव नहीं । बहुत सारे उस पर नियंत्रण करने वाले तत्व हैं और यदि दमित करें तो वह बार-बार उभरती रहती है । आखिर समाधान क्या होगा, कैसे हम उस इच्छा से छुटकारा पा सकेंगे ? एक रास्ता खोजना है। 'इच्छा पूर्ण कर लें' यह एक रास्ता है पर इससे समाज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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