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________________ १४ चित्त और मन मन को मन कहा जा सकता है । मनोविज्ञान में मन के प्रकार मनोविज्ञान ने मन के तीन विभाग किए हैं• अदस् (Id) मन • अहं (Ego) मन । • अधिशास्ता (Super Ego) मन । पहला विभाग है 'अदस्' मन । इस विभाग में आकांक्षाएं पैदा होती हैं। जितनी प्रवृत्त्यात्मक आकांक्षाएं और इच्छाएं हैं, वे सब इस मन में पैदा होती हैं। इसमें अचेतन का भाग अधिक है, चेतन का भाग कम । _दूसरा विभाग है 'अहं' मन । समाज-व्यवस्था से जो नियंत्रण प्राप्त होता है, उससे आकांक्षाएं नियंत्रित हो जाती हैं, परिमार्जित हो जाती हैं। उन पर अंकुश जैसा लग जाता है। मन में जो आकांक्षा या इच्छा पैदा हुई, 'अहं मन' उसे क्रियान्वित नहीं करता। तीसरा विभाग है 'अधिशास्ता' मन । यह अहं मन पर भी अंकुश रखता है, उसे नियंत्रित करता है। दृष्टिकोण फ्रायड और यंग का - चेतना की दृष्टि से उसके दो रूप सामने आते हैं-व्यक्त चेतना और अव्यक्त चेतना। मनोविज्ञान में इन्हें चेतन और अचेतन कहा गया है। 'फ्रायड' ने मन के दो संभाग बतलाए-चेतन मन और अचेतन मन । 'यंग' ने इस अवधारणा को बदल दिया । उन्होंने कहा-मन के दो संभाग ठीक नहीं हैं, क्योंकि मन के आधार पर बहुत निर्णय नहीं लिए जा सकते। मन बहुत जल्दी बदल जाता है। उसमें छिछलापन है, स्थायित्व नहीं है, गंभीरता नहीं है । जो इतना जल्दी बदल जाता है उसके आधार पर कैसे निर्णय किया जा सकता है ? उन्होंने मन को बहुत मूल्य नहीं दिया, माइंड की उपेक्षा कर उसके स्थान पर 'साइक' शब्द का प्रयोग किया। यह अधिक दायित्व वाला है, अधिक स्थायी है। यंग ने चित्त के दो संभाग कर दिए-चेतन और अचेतन । फ्रायड ने कहा-अचेतन मन में गंदगी भरी पड़ी है, कूड़ा भरा पड़ा है। वह दमित इच्छाओं का भंडार है। जो वासनाएं इच्छाएं, आकांक्षाएं दमित हो जाती हैं, वे अचेतन में चली जाती हैं । वहां दबी पड़ी रहती हैं और स्वप्न के रूप में उभर कर सामने आती रहती हैं। यूंग ने इसका भी प्रतिकार किया। उन्होंने कहा-अचेतन मन केवल दमित इच्छाओं का भण्डार नहीं है। इसमें बहत सारे अच्छे संस्कार भी हैं । दमित इच्छाएं हैं तो साथ-साथ में अच्छाइयां भी हैं । स्वरूप बदल गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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