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________________ मन की अवधारणा हमारे व्यवहार की व्याख्या हो सकती है। आज के मनोविज्ञान ने इस अज्ञात की खोज कर हमारे व्यवहार की व्याख्या की है । एक प्रकार से उसने आत्मा की दिशा में प्रस्थान कर दिया, स्थल जगत से सूक्ष्म जगत् की दिशा में प्रस्थान कर दिया। यदि मनोविज्ञान की यह व्याख्या नहीं होती, 'डेपथसाईकोलोजी' का 'केन्सेप्ट' हमारे सामने नहीं होता तो शायद हम केवल ज्ञात दुनिया की बात करते । जो दिखाई देता है, जो ज्ञात है, दृष्ट है, श्रुत है, उस सीमा में हमारी परिक्रमा होती किन्तु इस अवचेतन मन की मीमांसा ने आदमी को बहुत गहरे में ले जाकर उतार दिया। समग्र व्याख्या ___ फ्रायड ने कहा था--मनुष्य का मन एक हिमखंड जैसा होता है। हिमखंड का बहुत सारा भाग समुद्र में छिपा होता है। केवल थोड़ा-सा ऊपर का सिरा दिखाई देता है। जितना दिखाई देता है हिमखंड, उतना ही नहीं है । बहुत बड़ा है । दिखने वाला भाग छोटा है और न दिखने वाला बहुत बड़ा । ज्ञात छोटा और अज्ञात बड़ा । जुंग ने मन की तुलना एक महानगर से की है। मन एक महासागर है। उसमें ज्ञात मन केवल एक द्वीप जैसा है। अज्ञात मन महासागर जैसा है और ज्ञात मन महासागर में होने वाले द्वीप जैसा, एक छोटे टापू जैसा है । हम अपने सारे व्यवहार और आचरण की व्याख्या ज्ञात मन के माध्यम से करना चाहते हैं। यह कभी संभव नहीं होगा। केवल ज्ञात मन के द्वारा जो व्याख्या की जाएगी, वह अधूरी होगी, मिथ्या होगी। जब ज्ञात और अज्ञात--दोनों मनो की समष्टि करेंगे तो सम्पूर्ण व्याख्या होगी। डेफ्थ साइकोलॉजी अज्ञात मन के लिये फ्रायड ने 'डेफ्थ साइकोलोजी' की व्याख्या की । 'डेफ्थ साइकोलोजी' में केवल ज्ञात मन की व्याख्या नहीं होती, अज्ञात मन की व्याख्या होती है। प्रत्येक व्यवहार के लिए अज्ञात मन की व्याख्या होती है-मनुष्य का अमुक व्यवहार अज्ञात मे हो रहा है, ज्ञात मन के द्वारा ऐसा व्यवहार नहीं हो रहा है। आज के मनोविज्ञान ने जो अवचेतन मन की व्याख्या की, वह व्याख्या भारतीय दर्शनों ने कर्मवाद के आधार पर की, सूक्ष्म चेतना और चित्त के आधार पर की। मनोविज्ञान में मन और चित्त-दोनों में भेद नहीं किया गया किन्तु जैन-दर्शन में बहुत स्पष्ट भेद किया गया है-मन भिन्न है और चित्त भिन्न है। मन अचेतन है और चित्त चेतन है। मन ऊपर का हिस्सा है, जो चित्त का स्पर्श पाकर चेतन जैसा प्रतीत होता है। चित्त हमारी भीतर की सारी चेतना का प्रतिनिधित्व करता है । अज्ञात मन, अवचेतन मन को चित्त कहा जा सकता है और ज्ञात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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