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मन की अवधारणा
विरोधी विचार आदमी के मन में पैदा होते रहते हैं । एक मन कहता है-यह काम करूं और दूसरा मन कहता है-वह काम करूं । एक मन कहता है-यह करूं तो दूसरा मन कहता है-यह न करूं। कितने मन हैं । शायद हर आदमी के मन में ऐसा प्रश्न उठता होगा और हर व्यक्ति यह सोचता होगा कि कितने मन हैं ! अनेक मन हैं आदमी के । अहिंसा के मार्ग में चलने वाले व्यक्ति के मन में कभी-कभी विचार आ जाता है हिंसा करने का और हिंसा के मार्ग में चलने वाले व्यक्ति के मन में कभीकभी विचार उठ जाता है हिंसा न करने का। हिंसा के मार्ग पर चलने वाला अहिंसा की बात सोच लेता है और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाला हिंसा की बात सोच लेता है। ब्रह्मचर्य पर चलने वाला अब्रह्मचर्य की बात सोच लेता है और अब्रह्मचर्य पर चलने वाला ब्रह्मचर्य की बात सोच लेता है। कितने विरोधी भाव हमारे मन में पैदा होते रहते हैं ? सहज ही प्रश्न होता है-आदमी के मन कितने हैं ? अनेक हैं चित्त की वृत्तियां
___ भगवान महावीर ने कहा-'अणेगचित्ते खल अयं प्ररिसे'-यह पुरुष अनेक चित्तों वाला है । मन तो एक ही है । मन अनेक कैसे होगा ? वह तो हमारा वाहन है, यंत्र है, काम करने का एक साधन है। वह अनेक कैसे होगा? हमारे चित्त अनेक होते हैं। हमारे चित्त की वृत्तियां अनेक होती हैं। चित्त में नाना प्रकार की वृत्तियां जागती हैं, नाना प्रकार के चित्त जागते हैं और मन अनेक बन जाते हैं। मन अपने आप में एक होता है। चित्त की वृत्तियों के कारण और चित्तों के कारण मन भी अनेक जैसा प्रतिभासित होने लग जाता है। अज्ञात की दिशा
___ यह जो मानसिक अनेकाग्रता का प्रश्न है, मानसिक परिवर्तनशीलता, मानसिक चंचलता और विविधता का प्रश्न है, वह हमारे लिये एक मोड़ है । यहां से हम अज्ञात की खोज में प्रस्थान कर सकते हैं। यहां एक प्रश्न होता है और उस प्रश्न का समाधान अज्ञात में होता है । यदि सब कुछ ज्ञात मन ही करता तो इतने प्रकार के मन नहीं होते । ज्ञात के सिवाय भी कोई दूसरी दुनिया है और वह है अज्ञात की दुनिया। अज्ञात की दुनिया को खोजने पर
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