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चैतन्य की चार क्रियाएं
__ जहां चेतना खण्डित होती हैं, वहां आनन्द भी खण्डित होता है और शक्ति भी खण्डित होती है। जहां चेतना अखण्ड, वहां शक्ति अखण्ड और आनन्द अखण्ड । जब हम शुद्ध चैतन्य का अनुभव करते हैं तब केवल चैतन्य का ही अखण्ड अनुभव नहीं होता, उसके साथ-साथ शक्ति और आनन्द का भी अखण्ड अनुभव होने लग जाता है। मन की सारी दुर्बलताएं-भय, दुश्चिताएं भविष्य की बुरी कल्पनाएं एक साथ समाप्त हो जाती हैं और अनुभव होता है कि अब पाने को कुछ भी शेष नहीं। जब मन में कोई विषाद ही नहीं रहता तब कोरा आनन्द ही आनन्द रहता है। जानना, देखना, शक्ति का अनुभव और आनन्द का अनुभव-ये चैतन्य की चार क्रियाएं हैं। अचेतन में ज्ञान नहीं, दर्शन नहीं और आनन्द नहीं, केवल शक्ति है। शक्ति बहुत है। चेतन में अनन्त शक्ति है तो जड़ में भी अनन्त शक्ति है। पर चेतन में शक्ति के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है इसलिए उसका साक्षात्कार ही सत्य का साक्षात्कार है।
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