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चित्त और मन
आत्म साक्षात्कार : अनात्म साक्षात्कार
हमारे मन में हजारों-हजारों अवस्थाएं प्रति घंटा घटित होती हैं । एक घंटा में साठ मिनट होते हैं और इन साठ मिनटों में शायद सैकड़ों घटनाएं घटित हो जाती हैं। बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिनके मन में हजारों घटनाएं न घटित होती हों। यथार्थ के जगत् में कितनी घटनाएं घटित होती हैं, नहीं कहा जा सकता किन्तु मानसिक जगत् में हजारों घटनाए घटित होती हैं । भोजन करने में दस-बीस मिनट लगते होंगे किन्तु उस समय का लेखा-जोखा करें तो पता चलेगा-खाने की घटना एक है किन्तु उस घटना की मध्यावधि में पचासों-सैकड़ों और घटनाएं घटित हो जाती हैं। इसलिए कि हम बाह्य का साक्षात्कार कर रहे हैं। आत्म-साक्षात्कार से उलटा है अनात्म का साक्षात्कार। जब मन बाह्य का साक्षात्कार में लगता है, तब हमारे मन में हजारों-हजारों घटनाएं घटित होती हैं । अकारण भय आ जाता है, अकारण प्रेम आ जाता है, अकारण ही द्वेष आ जाता है और अकारण ही शत्रुता का भाव आ जाता है। कभी भलाई का और कभी बुराई का। चलचित्र पर जितने रूप नहीं उभरते हैं, उससे ज्यादा रूप हमारे मन में चित्रपट पर उभरते हैं । आत्म साक्षात्कार का मार्ग
बाह्य साक्षात्कार में बड़ी परेशानियां होती हैं । मन में जितने विकल्प उठते हैं, उतना ही मन अशान्त होता है। आदमी थक जाता है और बेचैनी का अनुभव करता है तब आदमी सोचता है कि दूसरे रास्ते से चलना चाहिए। वह आत्म-साक्षात्कार का रास्ता है । हम अनावश्यक विकल्पों को समाप्त कर देते हैं । यह आत्म-साक्षात्कार की पहली भूमिका है। हम कुछ विकल्पों को पुष्ट कर देते हैं, भावित करते हैं। उन्हें हम कहते हैं—सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यह हमारी दूसरी भूमिका है। इसका अर्थ है--जो हजारों-हजारों अनचाही बातें आती थीं, वे समाप्त हो जाती हैं और कुछेक बातों पर मन टिक जाता है। यह भी अंतिम मंजिल नही हैं। हम आगे बढ़ते हैं आत्मा-साक्षात्कार की तीसरी भूमिका की ओर । वहां जाने पर शुद्ध आत्मदर्शन होता है, जहां विकल्प का स्पर्श ही नहीं है । कोई विकल्प नहीं, कोई विचार नहीं, कोई संज्ञा नहीं और कोई अनुभव नहीं । चैतन्य के सिवाय दुनिया में कुछ और है, इसका अनुभव भी खो जाता है। केवल चैतन्य, केवल चैतन्य और केवल चैतन्य । यह वह स्थिति है, जहां सोना अपने मल को खो देता है, मिट्टी अपने विकारों को खो देती है । मिट्टी के सैकड़ों रूप बनते होंगे-सिकोरा, घड़ा आदि-आदि । किन्तु वहां केवल मिट्टी रह जाती है। इस स्थिति में हम जितनी देर रहते हैं, उतनी देर आत्मा का साक्षात्कार होता है।
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