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व्याधि : आधि : उपाधि
ध्याधि की आधार मित्ति
वर्तमान युग की सबसे बड़ी चिंता है-मनोविकार, आधि, मानसिक रोग । शारीरिक व्याधियां होती हैं। मनुष्य उसके लिए चिता भी करता है और उनसे छुटकारा पाने का प्रयत्न भी करता है । जब शरीर में कोई व्याधि होती है तब हमारा ध्यान शरीर की ओर जाता है। शरीर को व्याधि का मूल शरीर में ही खोजा जाता है, शरीर की प्रकृति में, शरीर के दोषों में या शरीर पर होने वाले बाहरी संक्रमणों में किन्तु शरीर की व्याधि का जो एक मूल है, उस ओर हमारा ध्यान बहुत कम जाता है। वह है आधि, मानसिक विकृति। यदि हम अपनी शारीरिक व्याधियों के लिए मानसिक विकृतियों पर ध्यान देना प्रारंभ करें तो व्याधि के सही निदान तक पहुंच सकते हैं। हम सोचते हैं-डॉक्टरों से निदान करवा लिया, एक्सरे करवा लिया, फोटो ले लिये, वैज्ञानिक युग के जितने निदान के उपकरण हैं, उनका उपयोग कर लिया, टेस्ट करा लिया, वैद्यों को नब्ज दिखला दी, समझते हैं निदान हो गया । वस्तुतः इतना करने पर भी पूरा निदान नहीं होता। उसकी एक बड़ी आधार-भित्ति छूट जाती है । वह है मानसिक विकृतियों की खोज । जब तक हम गहरे में उतरकर अपनी मानसिक विकृतियों तक नहीं पहुंचते, उनका प्रतिलेखन नहीं करते, तब तक व्याधि का सही निदान हमारे हाथ नहीं लगता। विकृति का हेतु
हम मानसिक विकृतियों पर ध्यान दें। आज के युग की सबसे बड़ी समस्या है मानसिक विकृति । आज मानसिक विकृति या मानसिक रुग्णता के लिए जितनी संभावना है उतनी शायद पहले नहीं थी। आज का युग उसके लिए जितनी उर्वर है उतना पहले का नहीं था। प्रश्न है-मानसिक व्यथा क्यों होती है ? मनोविकार क्यों होता है ? हम कारण की खोज करें। कारण का पता लगना मुश्किल नहीं है। जिन मनुष्यों ने कारण को खोजा है, उन्हें वह उपलब्ध हुआ है। कार्य के साथ कारण का संबंध है। कार्य दृष्ट होता है और कारण अदृष्ट । कार्य सामने होता है और कारण छिपा रहता है। मनुष्य ने किसी भी छिपी हुई वस्तु को अज्ञात नहीं रहने दिया, उसे ज्ञात कर लिया । हम उसे ज्ञात कर सकते हैं। मनोविकार का हेतु खोजा गया और खोजने पर पता चला कि उसका हेतु है मन की मलिनता । प्रतिदिन मन पर मैल जमता
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