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________________ इन्द्रिय : मन : भाव २८७ वल्ब का क्या दोष ? करंट आता है तो प्रकाश हो जाता है, नहीं आता है तो अन्धकार बना रहता है। हाई वोल्टेज हो तो अधिक प्रकाश होता है, लो वोल्टेज हो तो मंद प्रकाश होता है । इसमें वल्ब का क्या ? मूल कारण विद्युत् पैदा करने वाली शक्तिशाली तरंग है। भाव परिष्कार एक शब्द बहुत प्रचलित है—मनोभाव । कोरा भाव नहीं, मन का भाव । मन में उतरने वाला भाव, मन में प्रतिध्वनित होने वाला भाव । जो मन में उतरता है वह मनोभाव हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति प्रवृत्ति के चक्र में जी रहा है। दो शब्द हैंप्रवृत्ति और परिणाम । वर्तमान की प्रवृत्ति और अतीत का परिणाम । प्रत्येक आदमी वर्तमान में जीता है, अतीत को भोगता है और वर्तमान में कुछ करता है। यह चक्र चल रहा है। हमने अपना अतीत बनाया। उसे आज भोग रहे हैं। यदि हम सूक्ष्म विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि वर्तमान में हम जो कुछ कर रहे हैं, उसके साथ अतीत का सम्बन्ध भी जुड़ा हुआ है। इस बिन्दु पर कर्मशास्त्र के गहनतम सिद्धांतों का अनुशीलन करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। कर्मशास्त्र हमारे जीवन-विश्लेषण में एक महत्त्वपूर्ण भाग है कर्मशास्त्र का। मानस शास्त्र में साइकोलोजिकल एनेलिसिस द्वारा जिन रहस्यों का उद्घाटन अभी तक नहीं हुआ, उन रहस्यों का उद्घाटन बहुत पहले कर्मशास्त्र कर चुके हैं। हमारी प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, प्रत्येक कर्म का प्रतिकर्म होता है । वे हमारे साथ जुड़ जाते हैं । वे न केवल इस मस्तिष्क के साथ जुड़ते हैं किन्तु सूक्ष्म शरीर के साथ जुड़ जाते हैं। हमारा सूक्ष्म शरीर निरंतर संचित होता रहता है । अनन्त-अनन्त बन्धनों का चक्र उसमें चलता हैं। जब वे स्थूल शरीर में अभिव्यक्त होते हैं तब उनका अनुभव होता है। वह चक्र निरन्तर चलता ही पहता है । स्थूल शरीर में जितने केन्द्र हैं, स्रोत हैं, द्वार हैं, वे सब सूक्ष्म शरीर से सम्बन्धित केन्द्र, स्रोत और द्वार हैं। जैसी सक्ष्म शरीर की रचना है वैसी ही संवादीरचना स्थूल शरीर की हो जाती है । भाव का स्रोत भाव का स्रोत है-सूक्ष्म शरीर । सारे भाव सूक्ष्म शरीर में उत्पन्न होते हैं और वहां से छन कर स्थूल शरीर में आते हैं। वे ही भाव शरीर, मन और वाणी को प्रभावित करते हैं। उनमें अपना चैतन्य उड़ेल देते हैं। तब शरीर, मन और वाणी-तीनों सचेत नहो जाते हैं । स्रोत भीतर है वहीं से सब कुछ आ रहा है। हम मन की चेतना के स्तर पर जीते हैं, बुद्धि की चेतना के स्तर पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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