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________________ २८६ चित्त और मन मन की चंचलता के साधन वृत्तियों के कारण मन स्वभावतः चंचल होता ही है । जब उसे चंचल बनाने के अनेक साधन मिल जाते हैं तब उसकी चंचलता वृद्धिंगत हो जाती है । आज मन को चंचल बनाने के जितने साधन सुलभ हैं उतने सुलभ अतीत में नहीं थे। अतीत में साधन ही बहुत कम थे। पदार्थ विकास के साथ-साथ भौतिक साधन बढ़ रहे हैं और वे सब चंचलता को बढ़ाने वाले हैं। रेडियो, टेलीविजन आदि उपकरण जानकारी के अच्छे साधन माने जाते हैं, किन्तु वे चंचलता को बढ़ावा देने वाले भी हैं। सिनेमा मनोरंजन का अच्छा साधन माना जाता है पर वह मन को चंचल बनाने का अनुत्तर उपाय है । और भी जितने दृश्य और श्रव्य साधन हैं, वे सब चंचलता के वर्द्धक हैं। जो व्यक्ति समाचारपत्रों को पढ़ता है, वह हत्या, मारकाट, लूटखसोट, बलात्कार आदि की घटनाओं को पढ़कर अनेक संवेदनों से भर जाता है। समाचारपत्रों में इन समाचारों की बहुलता रहती है । चंचल बनाने वाले साधन-बहुल इस युग में यदि योग का उपयोग न हो, योग की अपेक्षा न हो और मन को एकाग्र करने की आवश्यकता न हो तो अतीत के किसी भी युग में ऐसी अपेक्षा नहीं मानी जा सकती। मन को एकाग्र करना वर्तमान युग की बहुत बड़ी अपेक्षा है, बावश्यकता है। मनोभाव जब तक हम भाव को नहीं समझेंगे तब तक मन की समस्याओं का समाधान नहीं पा सकेंगे। सभी मानसिक उलझनों तथा समस्याओं का मूल कारण है भाव । मन बेचारा गधा है जो निरन्तर भार ढोता है । उस पर भार लादने वाला कोई दूसरा है और वह भाव है । भाव ही सारी समस्याएं उत्पन्न करता है। वह उनकी अभिव्यक्ति करवाता है मन के द्वारा । सेनापति कन्ट्रोल रूप में बैठा सारा संचालन कर रहा है । सेनापति मौत के सामने नहीं आता। बेचारा सैनिक पहले मारा जाता है । सैनिक का दोष ही क्या है ? वह तो सेनापति के आदेश का पालन मात्र करता है । इसी प्रकार हमारी प्रवृत्तियों का सारा संचालन करता है हमारा भाव । हम सब भाव के द्वारा संचालित हैं। जरूरी है भाव को समझना भाव हमारे व्यक्तित्व के गहनतम अन्तराल का एक स्रोत है। जैसा भाव होता है वैसा ही मन हो जाता है। अच्छा भाव अच्छा मन और बुरा भाव बुरा मन । भाव के साथ मन चलता है, मन के साथ भाव नहीं चलता। हमारा अस्तित्व भाव से जुड़ा हुआ है। हमारी सारी अभिव्यक्ति भाव के कारण हो रही है। वल्ब वल्ब है। बिजली आती है तो प्रकाश कर देता है और बिजली नहीं आती है तो प्रकाश नहीं करता। प्रकाश करने या न करने में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ww
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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