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________________ चित्त और मन है और जैसे-जैसे एकाग्रता का अभ्यास परिपक्व होता जाए, वैसे-वैसे विषयों से बचने की अपेक्षा उनके प्रति होने वाली आसक्ति से बचना बहुत आवश्यक है । विषयों से बचने की प्रवृत्ति हो और अनासक्ति का भाव न हो, उस स्थिति में आन्तरिक पवित्रता पर बाह्याचार की विजय होती है । विषयों से बचने का प्रयत्न अनासक्ति की साधना का पहला चरण है इसलिए उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । सिद्धि का द्वार इन दोनों के सामंजस्य होने पर ही खुलता है । आसक्ति के कारण व्यक्ति के मन में क्रोध, अभिमान, माया और लोभ के भाव उत्पन्न होते हैं और वे मन को व्यग्र बनाते हैं। उन पर विजय पाए बिना कोई भी व्यक्ति एकाग्रता को परिपुष्ट नहीं बना सकता, इन्द्रियों को अन्तर्मुखी नहीं बना सकता । कषाय प्रतिसंलीनता २८४ कषाय प्रतिसंलीनता के चार साधन हैं १. क्रोध - निवृत्ति के लिए उपशम भावना का अभ्यास । २. मान-निवृत्ति के लिए मृदुता का अभ्यास | ३. माया - निवृत्ति के लिए ऋजुता का अभ्यास । ४. लोभ - निवृत्ति के लिए संतोष - अपनी आन्तरिक समृद्धि के निरीक्षण का अभ्यास | इन प्रतिपक्ष भावनाओं का पुन: पुनः अभ्यास करने से कषाय अपने हेतुओं में विलीन हो जाता है । आन्तरिक अनुभूति और शून्यता की गहराई में जाने के लिए एकांतवास बहुत मूल्यवान् है । कोलाहलमय वातावरण में हम दूसरों को सुनते हैं किन्तु अपने अन्तर की आवाज नहीं सुन पाते । रंगीन वातावरण में हम दूसरों को देखते हैं किन्तु इस शरीर में विराजमान चिन्मय प्रभु को नहीं देख पाते । एकांतवास में अपने अन्तःकरण की आवाज सुनने और अपने प्रभु से साक्षात्कार करने का सुन्दर अवसर मिलता है। उससे हमारा मन बाह्य सम्पर्कों से मुक्त होकर अपने शक्ति स्रोत में विलीन हो जाता है । मन भी एक समस्या है मन की चंचलता एक समस्या है शरीर - चिकित्सक के लिए भी और मनश्चिकित्सक के लिए भी । धार्मिक व्यक्तियों के लिए भी यह समस्या बनी हुई है । साधारण व्यक्ति के सामने मन की समस्या कितनी बड़ी होगी, इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती । एक भाई गैस ट्रबल से पीड़ित था । हार्ट ट्रबल की बात सुनकर वह चिन्तित हो गया । उसका मन टूट गया। उसका शारीरिक बल क्षीण होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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