________________
२८०
विशेष अंश पर ही हो सकता है, सर्वांशतः नहीं ।
इन्द्रिय और मन का ज्ञानक्रम
मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान के साधन हैं - इन्द्रिय और मन । फिर भी दोनों एक नहीं हैं । मति द्वारा इन्द्रिय और मन की सहायता मात्र से अर्थ का ज्ञान हो जाता है । श्रुत को शब्द या संकेत की ओर अपेक्षा होती है। जहां हम घट को देखने मात्र से जान लेते हैं, वह मति है और जहां घट के शब्द के द्वारा घट को जानते हैं, वह श्रुत है । वह मति-ज्ञान में ज्ञाता और ज्ञेय पदार्थ के बीच इन्द्रिय और मन का व्यवधान होता है, इसलिए वह परोक्ष है किन्तु उस (मति - ज्ञान) में इन्द्रिय, मन और ज्ञेय वस्तु के बीच कोई व्यवधान नहीं होता इसलिए उसे लौकिक प्रत्यक्ष भी कहा जाता है। श्रुत-ज्ञान में इन्द्रिय, मन और ज्ञेय वस्तु के बीच शब्द का व्यवधान होता है इसलिए वह सर्वतः परोक्ष ही होता है ।
लौकिक- प्रत्यक्ष आत्म- प्रत्यक्ष की भांति समर्थ प्रत्यक्ष नहीं होता इसलिए इसमें क्रमिक ज्ञान होता है । वस्तु के सामान्य दर्शन से लेकर उसकी धारणा तक का क्रम इस प्रकार है
Sm
ज्ञाता और ज्ञेय वस्तु का उचित सन्निधान - व्यंजन | वस्तु के सर्व सामान्य रूप का बोध - दर्शन ।
वस्तु के व्यक्तिनिष्ठ सामान्य रूप का बोध अवग्रह |
वस्तु-स्वरूप के बारे में अनिर्णायक विकल्प - संशय ।
वस्तु-स्वरूप का परामर्श - वस्तु में प्राप्त और अप्राप्त धर्मों का
पर्यालोचन
चित्त ओर मन
-
ईहा - ( निर्णय की चेष्टा )
वस्तु-स्वरूप का निर्णय - अवाय (निर्णय)
इन्द्रिय और मन की सापेक्ष-निरपेक्ष वृत्ति
इन्द्रिय प्रतिनियत अर्थग्राही है। पांच इन्द्रियों - स्पर्शन, रसन, घाण, चक्षु, श्रोत्र के पांच विषय हैं—स्पर्श, रस, गन्ध, रूप, शब्द । मन सर्वार्थग्राही है । वह इन पांचों अर्थों को जानता है । इसके सिवाय मन का मुख्य विषय श्रुत है । 'पुस्तक' शब्द सुनते ही या पढ़ते ही मन को 'पुस्तक' वस्तु का ज्ञान हो जाता है । मन को शब्द - संस्पृष्ट वस्तु की उपलब्धि होती है । इन्द्रिय को पुस्तक देखने पर 'पुस्तक' वस्तु का ज्ञान होता है और 'पुस्तक' शब्द सुनने पर उस शब्द मात्र का ज्ञान होता है । किन्तु 'पुस्तक' शब्द का यह पुस्तक वाच्यार्थ है - यह ज्ञान इन्द्रिय को नहीं होता । इन्द्रियों में मात्र विषय की उपलब्धि - अवग्रहण की शक्ति होती है, ईहा--गुण-दोष - विचारणा, परीक्षा या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org