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इन्द्रिय : मन : भाव
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इन्द्रियां इन विशेष पर्यायों को नही जान सकतीं इसलिए मानसिक अवग्रह में वे संयुक्त नहीं होती, जैसे ऐन्द्रियिक अवग्रह में मन संयुक्त होता है । अवग्रह के उत्तरवर्ती ज्ञान क्रम पर तो मन का एकाधिकार है ही। विभाग-क्रम : प्राप्ति-क्रम
ज्ञान का आवरण हटता है, तब लब्धि होती है, वीर्य का अन्तराय दूर होता है, तब उपयोग होता है । ये दो ज्ञानेन्द्रिय और ज्ञान-मन के विभाग हैं-आत्मिक चेतना के विकास अंश हैं।
__ इन्द्रिय के दो विभाग और हैं-निवृत्ति-आकार-रचना और उपकरण-विषय-ग्रहण-शक्ति । ये दोनों ज्ञान की सहायक इन्द्रिय-पौद्गलिक इन्द्रिय के विभाग हैं---शरीर के अंश हैं । इन चारों के समुदाय का नाम इन्द्रिय है। चारों में से एक अंश भी विकृत हो तो ज्ञान नहीं होता । ज्ञान का अर्थ-ग्राहक अंश उपयोग है । उपयोग (ज्ञान की प्रवृत्ति) उतना ही हो सकता है, जितनी लब्धि (चेतना की योग्यता) होती है। लब्धि होने पर भी उपकरण न हो तो विषय का ग्रहण नहीं हो सकता। उपकरण निर्वृत्ति के बिना काम नहीं कर सकता। इसलिए ज्ञान के समय इनका विभाग-क्रम इस प्रकार बनता है—निर्वृत्ति, उपकरण, लब्धि और उपयोग।
इनका प्राप्ति-क्रम इससे भिन्न है। उसका रूप इस प्रकार बनता हैलब्धि, निर्वृत्ति, उपकरण और उपयोग । अमुक प्राणी में इतनी इन्द्रियां बनती हैं, न्यूनाधिक नहीं बनतीं, इसका नियामक इनका प्राप्ति-क्रम है। इसमें लब्धि की मुख्यता है । जिस प्राणी में जितनी इन्द्रियों की लब्धि होती है, उसके उतनी ही इन्द्रियों के आकार, उपकरण और उपयोग होते हैं। नियामक है विभाग क्रम
हम जब एक वस्तु का ज्ञान करते हैं तब दूसरी का नहीं करतेहमारे ज्ञान में यह विप्लव नहीं होता। इसका नियामक विभाग-क्रम है। इसमें उपयोग की मुख्यता है । उपयोग निर्वृत्ति आदि निरपेक्ष नहीं होता किन्तु इन तीनों के होने पर भी उपयोग के बिना ज्ञान नहीं हो सकता। उपयोग ज्ञानावरण के विलय की योग्यता और वीर्य-विकास-दोनों के संयोग से बनता है । इसलिए एक वस्तु को जानते समय दूसरी वस्तुओं को जानने की शक्ति होने पर भी उनका ज्ञान इसलिए नहीं होता कि वीर्य-शक्ति हमारी ज्ञान-शक्ति को ज्ञायमान वस्तु की ओर ही प्रवृत्त करती है।
___ इन्द्रिय-प्राप्ति की दृष्टि से प्राणी पांच भागों में विभक्त होते हैंएकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय किन्तु इन्द्रिय ज्ञानउपयोग की दृष्टि से सब प्राणी एकेन्द्रिय ही होते हैं । एक साथ एक ही इन्द्रिय का व्यापार हो सकता है । एक इन्द्रिय का व्यापार भी स्व-विषय के किसी
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