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________________ चित्त समाधि के सूत्र २७७ तीव्रता को कम करना । जब आदमी में राग और द्वेष प्रबल होते हैं तब वह नाना प्रकार के आचरण करता है। ___ ध्यान का अर्थ है-जीवन में जागरूकता का विकास । ध्यान से चेतना इतनी निर्मल बन जाती है कि प्रत्येक प्रवृत्ति में समता अवतरित हो जाती है । हर घटना के साथ समता का भाव जुड़ जाता है। कोई संदेह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति को, जो अर्जित है, उसे भुगतना ही पड़ता है। वह व्यक्ति चाहे धर्म करने वाला हो या धर्म करने वाला न हो, ध्यान करने वाला हो या ध्यान करने वाला न हो । अन्तर का बिन्दु कहां है, हम उसे पकड़ें। __ साधना यह है--मन को उस भूमिका पर ले जाना, जहां पहुंचने पर एक परम भूमिका प्राप्त होती है, एक विशेष आकर्षण पैदा होता है, जिसमें दूसरे आकर्षण समाहृत हो जाते हैं, समाप्त हो जाते हैं। यह एकाग्रता की भूमिका है। यह मानसिक समाधि है, चित्त की समाधि है। इस स्थिति में पहुंचने वाला साधक अनगिन समस्याओं का पार पा जाता है। जितने असंतोष, जितनी लालसाएं, जितनी वासनाएं, जितनी बाकांक्षाएं, जितने संघर्ष उत्पन्न होते हैं वस्तु जगत् में, व्यक्ति इनसे छुटकारा पा लेता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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