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________________ चित्त और मन २७२ किन्तु मन को शांत कैसे करना है, इसके लिए हम कोई नियम नहीं बना सकते । हम आसन के द्वारा भी मन को शांत कर सकते हैं, प्राणायाम के द्वारा भी मन को शान्त कर सकते हैं, आत्म-दर्शन के द्वारा भी मन को शांत कर सकते हैं । मूल है चित्त समाध महापथ एक है । छोटी-मोटी पगडंडियां हजारों-हजारों मिलती हैं । किन्तु मूल एक है— चित्त को शांत करना और उसके बिना कोई गति नहीं है । ऐसे लोग भी हुए हैं साधना के पथ में, जिन्होंने एक ही आसन का प्रयोग किया और अपने लक्ष्य तक पहुंच गए, चित्त-विलय की भूमिका में पहुंच गए। यह असम्भव बात नहीं है । अर्धमत्स्येन्द्र आसन का नियमित रूप से प्रयोग विश्वास के साथ करते चले जाएं। कुछ वर्षों बाद यह स्थिति आ सकती है कि हमारा चित्त अपने-आप शान्त और सहज होने लगता है । जिस सुषुम्ना में प्रवेश पाकर मन विलीन होता है, उसके जागरण की क्रिया अर्धमत्स्येन्द्र आसन में सहज ही होती है । मच्छेन्द्रनाथ ने इसी आसन को अपनाया था। इसी आसन में बैठकर वे अपने चित्त को समाहित करते थे । चित्त के समाधान की यह भी एक प्रक्रिया है । कोई व्यक्ति आसन नहीं करता, केवल श्वास पर ही लग जाता है, श्वास की प्रक्रियाओं पर लग जाता है, श्वास को शान्त करता है, श्वास का दर्शन करता है, वह भी उसी भूमिका पर पहुंच जाता है । बहुत सारे बौद्ध साधक अनापानसती की साधना के द्वारा ठीक बहां पहुंच जाते थे जहां कि ध्यान करने वाला पहुंचता है । श्वासदर्शन की प्रक्रिया से, लम्बे समय तक घंटों-घंटों तक श्वास का दर्शन करतेकरते व्यक्ति चित्त समाधि की स्थिति तक पहुंच जाता है । आसन, श्वास- दर्शन या तीसरा - चौथा कोई साधन --- भाषाएं अनेक हैं, फलित एक है । चित्त समाधि के सूत्र समाधि का अर्थ है --चित्त की एकाग्रता और उसका निरोध | महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग में धारणा, ध्यान और समाधि - इन तीन अंगों का प्रतिपादन किया है । बौद्ध साधना पद्धति में समाधि का अर्थ चित्त और चैतसिक का दू स्थिरीकरण है । मन ध्यान वस्तु में स्थिर हो जाता है क्योंकि मन के साथ रहने वाले मानसिक तथ्य ( चैतसिक) पवित्र होते हैं और वे मन को स्थिर होने में सहयोग देते हैं । दृढ़ स्थिरीकरण का अर्थ है- -सन का एक वस्तु में स्थिर होना । इसमें और किन्हीं बाधाओं और दोषों का समावेश नहीं होता । जैन साधना पद्धति में समाधि का अर्थ है- शुद्ध चैतन्य का अनुभव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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