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________________ २६६ चित्त और मनः वह इन्द्रिय-स्तर की चेतना है। यह वास्तव में चेतना का स्तर नहीं हैं, चेतना के प्रकट होने का स्तर है। व्यावहारिक उपयोगिता की दृष्टि से इसे इन्द्रिय-- स्तर की चेतना कहा जा सकता है । मानस चेतना आवृत चेतना के प्रकट होने का दूसरा माध्यम है मन । मस्तिष्क के माध्यम से जो चेतना प्रकट होती है। वह मन के स्तर की चेतना है। मन अपने आप में अचेतन है। वह मस्तिष्क की क्रिया है किन्तु उसके माध्यम से जो चेतना प्रकट होती है वह मानसिक चेतना है। इन्द्रिय-स्तर की चेतना में भी मस्तिष्क माध्यम होता है किन्तु इन्द्रियों के पृथक्-पृथक् केन्द्र बने हुए हैं । दूसरे में वह मस्तिष्क का एक छोटा कार्य है। इन्द्रियों के स्तर पर जो चेतना प्रकट होती है वह केवल वर्तमान को पकड़ती है, वर्तमान को जानती है । आंख के सामने कोई रूप आया, आंख ने देख लिया। उसका काम समाप्त हो गया। आगे क्या है, पीछे क्या है, उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। कान में शब्द पड़ा, सुन लिया। उस शब्द का क्या अर्थ है ? उस शब्द के बारे में क्या सोचना है ? यह कान का काम नहीं है। इन्द्रियों के माध्यम से प्राथमिक स्तर की चेतना प्रकट होती है इसलिए उसमें वर्तमान को जानने की ही क्षमता होती है। मन के स्तर पर प्रकट होने वाली चेतना में त्रैकालिक ज्ञान की क्षमता होती है । वह वर्तमान को जानती है, अतीत का स्मरण करती है। और भविष्य की कल्पना करती है। इंद्रिय-ज्ञान की जो क्रिया है उसकी प्रतिक्रिया मानसिक ज्ञान की चेतना में होती है। मन इंद्रियों के ज्ञान का संश्लेषण और विश्लेषण करता है। मस्तिष्क और मन ___ मस्तिष्क में स्मृति या संस्कार का बहुत बड़ा संग्रह है। इन्द्रियां जो ग्रहण करती हैं वह मस्तिष्क में संगृहीत हो जाता है। योग की भाषा में उसे हम वृत्ति या संस्कार और मनोविज्ञान की भाषा में उसे अक्षय संचय कोष कह सकते हैं । जब-जब बाह्य उत्तेजनाएं मिलती हैं तब-तब प्रतिघात होता है । हमने एक व्यक्ति को पहले देखा । वह स्मृति में नहीं रहा । दस वर्ष बाद जैसे ही वह व्यक्ति सामने आया वैसे ही हमारे स्मृति-तंत्र पर प्रतिघात हुआ। स्मृति जागृत हो गयी। हमने उस व्यक्ति को पहचान लिया। यह प्रतिक्रिया प्रतिघात के कारण हुई किन्तु उसका संस्कार मस्तिष्क के संचय-कोष में संचित था। जो संचित था वह उत्तेजना मिलते ही उत्तेजित हो गया, मन की क्रिया उत्पन्न हो गई। संचालक है मस्तिष्क मन की क्रिया का संचालन मस्तिष्क के द्वारा होता है इसलिए वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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