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________________ चेतना का वर्गीकरण २६५ वह एक अखण्ड चौकी हो गई। वैसे ही हमारी चेतना का जितना आवरण हटता है, वहां उसका रूप भिन्न-भिन्न हो जाता है। बुद्धि, इन्द्रिय और मन एक ही चेतना के तारतम्य रूप हैं। बुद्धि और विद्या बुद्धि मन से अलग बस्तु है । मन इन्द्रियों की सहायता से अपना कार्य करता है । बुद्धि मन की सहायता से अपना कार्य करती है । हम पुस्तकों को पढ़कर या सुनकर जानते हैं, वह विद्या है, बुद्धि नहीं है। बुद्धि सहजात होती है । मानस-शास्त्रियों ने भी यह स्वीकार किया है कि बुद्धि जन्म के साथ ही उत्पन्न होती है। बाद में उसका विकास नहीं होता। साधारणतया हम कहते हैं कि बुद्धि का विकास हो गया किन्तु सूक्ष्म-दृष्टि से यह बात सही नहीं है । बुद्धि का कभी विकास नहीं होता । जन्म-काल में जितनी बुद्धि होती है उतनी ही रहती है । वह न घटती है और न बढ़ती है। विद्या का विकास होता है । वह बाहर से आती है । बुद्धि बाहर से नहीं आती। बुद्धि का काम निर्णय करना, विवेक करना बुद्धि का काम हैं । एक आदमी बिलकुल ही पढ़ा-लिखा नहीं होता, फिर भी सही निर्णय लेता है और ढंग से काम करता है । वह ऐसा बुद्धि के द्वारा करता है। वह विद्यावान् नहीं है किन्तु बुद्धिमान् है। बुद्धि का चमत्कार विद्या से बहुत अधिक है। बुद्धि के उच्चस्तर को हम प्रातिभ-ज्ञान भी कह सकते हैं । जिसे हमने कभी सुना नहीं, जाना नहीं ऐसी वस्तु हमारे सामने आ गयी, उसके बारे में बुद्धि निर्णय ले सकती है, उसका विश्लेषण कर सकती है। उसमें ऐसी क्षमता है। मन का काम इन्द्रियों के द्वारा जो प्राप्त करता है उसका संकलन और विश्लेषण करना मात्र है। किंतु जो नया ज्ञान उत्पन्न होता है वह सारा का सारा बुद्धि के द्वारा होता है । इन्द्रिय-स्तर की चेतना से अधिक समर्थ मानस-स्तर की चेतना है और उससे अधिक समर्थ बौद्धिक स्तर की चेतना है। यह इन्द्रिय-स्तर और अतीन्द्रिय- स्तर का मध्यवर्ती चेतना का स्तर है। माध्यम है इन्द्रिय हमारी चेतना सूर्य की भांति अखण्ड है। वह अनावृत होती है तब उसके प्रकाश में कोई अवरोध नहीं होता। उसकी क्षमता का कोई विभाजन नहीं होता। हमारी चेतना अनावृत नहीं है इसलिए वह सर्वात्मना प्रकट नहीं हो रही है। उसकी कुछ रश्मियां प्रकट हो रही हैं और वे भी किसी माध्यम से प्रकट नहीं होती अपने आप प्रकट होती हैं। आवृत चेतना के प्रकट होने का एक माध्यम है-इन्द्रिय । आंख, कान, नाक, जिह्वा और त्वचा-इन पांचों इंद्रियों के माध्यम से जो चेतना प्रकट होती है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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