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________________ २६४ चित्त और मन इष्ट या अनिष्ट पुद्गलों को द्रव्य - मन ( पौद्गलिक मन ) ग्रहण करता चला जाता है । मन-रूप में परिणत हुए अनिष्ट पुद्गलों से शरीर की हानि होती है और मन-रूप में परिणत इष्ट पुद्गलों से शरीर को लाभ पहुंचता है । इस प्रकार शरीर पर मन का असर होता है । यद्यपि शरीर पर असर उसके सजातीय पुद्गलों के द्वारा ही होता है तथापि उन पुद्गलों का ग्रहण मानसिक प्रवृत्ति पर निर्भर है । इसलिए इस प्रक्रिया को हम शरीर पर मानसिक असर कह सकते हैं | देखने की शक्ति ज्ञान है । ज्ञान आत्मा का गुण है । फिर भी आंख के बिना मनुष्य देख नहीं सकता । आंख में रोग होता है, दर्शनक्रिया नष्ट हो जाती है । रोग की चिकित्सा की और दिखने लग जाता है । यही बात मस्तिष्क और मन के बारे में है । बुद्धि और मन फिर भी उस गोलक वैसे ही मस्तिष्क के आंख के गोले के बिना कोई देख नहीं सकता, की क्रिया को ही देखने की क्रिया नहीं कहा जा सकता। बिना मनन को क्रिया नहीं होती, फिर भी मस्तिष्क ही मन नहीं है । आंख का गोला देखने में सहयोग करता है, वैसे ही मस्तिष्क मनन में सहायक है । चैतन्य का विकास और मस्तिष्क- रचना दोनों के समुचित योग से ही मानसिक क्रिया निष्पन्न होती है । मन का इन्द्रियों के साथ सम्बन्ध होता है । इन्द्रियों के स्पर्श आदि पांच विषय हैं । इन विषयों में सारी वस्तुएं समाविष्ट हैं । इन्द्रियों के द्वारा हम हर वस्तु को और उसके स्थूल रूपों को पकड़ते हैं। शीत और उष्ण के स्पर्श से वस्तु का ज्ञान होता है । आम के रस के स्वाद से हम आम को पहचान लेते हैं । रस ही आम नहीं है । उसमें रूप भी है पर हम इसके द्वारा उसको पहचान लेते हैं। गंध के द्वारा भी बाह्य जगत् से हमारा सम्पर्क होता है । रूप और संस्थान भी सम्पर्क के माध्यम हैं । शब्द के माध्यम से भी हमारा बाह्य जगत् से संबन्ध जुड़ता है । मन का बाह्य से सीधा सम्पर्क नहीं होता । वह इन्द्रियों के माध्यम से होता है । चेतना के तारतम्य रूप बुद्धि और मन में भेद क्या है ? बुद्धि और मन एक ही चेतना के तारतम्य रूप हैं । सूर्य एक है पर उसका प्रकाश खण्ड-खण्ड होकर खिड़की आदि अनेक द्वारों से आता है । उनसे अनेक द्वारों के अनेक रूप बन जाते हैं । वर्षा का एक ही जल तालाब, गड्डे, और समुद्र में जाकर भिन्न-भिन्न रूप ले लेता है । जयाचार्य ने लिखा- एक चौकी रेत में दब गई। कहीं से खोदा तो उसका एक कोना दिखाई दिया। दूसरी ओर खोदने से दूसरा कोना दिखाई दिया। तीसरे और चौथे कोने से खोदा, चार वस्तु बन गई । पूरी खुदाई से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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