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चेतना के स्तर
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जानते हैं पर भावना से प्राप्त सम्मोहन से मुक्त हुए बिना क्या यह संभव हो सकता है ? भले न हो, फिर भी हम स्वतन्त्र चिन्तन का उपक्रम करते हैं-यह हमारी विचार-स्तरीय चेतना है।
__ हम पदार्थ के बाहरी स्वरूप को देखकर ही संतुष्ट नहीं होते, उसके आंतरिक या सूक्ष्म स्वरूप तक जाने का प्रयत्न करते हैं-यह हमारी दर्शनस्तरीय चेतना है । प्रेक्षा के द्वारा हम सुषुप्ति को जागरूकता में बदलकर दर्शन शक्ति को अन्तदर्शन की भूमिका पर ले जाते हैं। अनुभव चेतना
___ जब अनुभव की चेतना जागती है तब बुद्धि, जो कभी बहुत शक्तिशाली लग रही थी, शक्तिहीन लगने लगती है। मन भी कमजोर लगने लगता है। फिर विश्वास टूटता है और फिर इन्द्रियों, मन और बुद्धि द्वारा जो प्राप्त होता है उसमें कुछ सार नहीं लगता। जब तक अनुभव की चेतना नहीं जागती तब तक आदमी आंख, कान, जीभ द्वारा प्राप्त संवेदनों को ही सारभूत मानता है । उसकी दृढ़ धारणा बन जाती है कि इन्द्रिों द्वारा जो उपलब्ध होता है वही सार है। मन के द्वारा जो उपलब्ध होता है वही सार है। जब आदमी इन सब भूमिकाओं को पार कर ऊपर चढ़ जाता है तब उसे लगता है कि जिसे वह सार मान रहा था, वे वास्तव में सारहीन हैं और जो सार है, वह भीतर में पड़ा है। यह जागरण दो प्रकार से हो सकता है-स्वभाव से या अभ्यास से–'निसर्गाद् वा अधिगमाद् वा। अचानक भी ऐसी घटना घटित हो सकती है, कोई संवेग दर्शन हो सकता है कि व्यक्ति में अनुभव की चेतना जागृत हो जाती है । अभ्यास के द्वारा भी इसका जागरण किया जा सकता है। किसी प्रबुद्ध व्यक्ति से सुनकर या स्वयं में विशिष्ट ज्ञान की उपलब्धि होने पर भी यह जागरण हो सकता है। जब यह जागरण होता है तब बाह्य सीमाओं का अतिक्रमण कर साधक आन्तरिक सीमा में प्रवेश पा जाता है। द्वद्व चेतना
दो प्रकार की चेतनाएं हैं—द्वंद्व चेतना और द्वन्द्वातीत चेतना। अनेक व्यक्तियों में शक्तियां जागृत हो जाती हैं किन्तु यदि शक्ति के बाद द्वंद्वातीत चेतना नहीं जागती, सारी चेतना द्वन्द्व में बद्ध होती है, उस स्थिति में भयंकर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शक्ति के जागने के बाद उसे झेलने के लिए द्वंद्वों से अतीत चेतना आवश्यक होती है। उसके बिना जागी हुई शक्ति से अनर्थ घटित हो सकता है। भूतों को वश में करने वाले जानते हैं कि जब भूत जागते हैं तब बलि की मांग करते हैं । यदि उस समय भूत-साधक घबड़ा जाता है, वह स्थिति को नहीं संभाल पाता तो जागा हुआ भूत उसे ही लील जाता है। यदि वह व्यक्ति भूत की मांग पूरी कर देता है तो वह भूत
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