SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२ चित्त और मन काम। सेक्स केवल काम का ही वाचक नहीं है। वह मनुष्य को समस्त वृत्तियों और प्रवृत्तियों का वाचक है । इस आधार पर कहा जा सकता है कि काम ही सब कुछ करा रहा है । यदि यह काम की इच्छा न हो तो आदमी की अन्यान्य इच्छाएं सिमट जाएंगी। तीन चेतनाएं हमारी चेतना के अनेक स्तर हैं। उनमें सबसे स्थूल स्तर है इन्द्रिय । उससे सूक्ष्म है मन । उससे सूक्ष्म है बुद्धि और उससे सूक्ष्म है अध्यवसाय । इस प्रकार स्तर असंख्य हो सकते हैं। इतने स्तर हैं कि जिनका नामकरण नहीं किया जा सकता। चेतना के इन अनेक स्तरों में से हम गुजरते हैं और अनेक स्तरों में हम जीते हैं। तीन प्रकार की चेतनाए हैं— इन्द्रिय-चेतना, मनश्चेतना और बौद्धिक चेतना । आदमी इन तीनों को काम में लेता है और इन तीनों पर पूरा विश्वास करता है । अनुभव की बात यह है कि ये तीनों चेतनाएं मनुष्य को उलझाती हैं, सुलझाती नहीं। इन्द्रिय चेतना का जागरण होने पर आसक्ति का जागरण होता है, वैराग्य का भाव दब जाता है। आदमी इन्द्रिय चेतना को काम में ले पर उस पर भरोसा न करे। यही बात मनश्चेतना के विषय में है। मन चंचल है, नटखट है। उस पर पूरा भरोसा करने पर वह धोखा दे जाता है। आदमी बुद्धि की चेतना से काम करता है। वह तर्क का व्यवहार करता है पर तर्क भीतर तक नहीं पहुंचता। वह आदमी को उलझा देता है। यह इस दुनिया का सबसे बड़ा सक्षम शास्त्र है। इससे बड़ेबड़े शस्त्र काटे जा सकते हैं। तर्क हर बात को काट सकता है फिर वह बात चाहे किसी के द्वारा ही क्यों न कही गई हो । ऐसे बौद्धिक प्रश्न सामने आते हैं जहां हार-जीत का प्रश्न होता है। बुद्धि आखिर बुद्धि है । जो बुद्धि के व्यायाम में निपुण है वह जीत जाता है और जो उस खेल में निपुण नहीं है, वह हार जाता है। आदमी व्यवहार की दुनिया में बुद्धि के सहारे जीत सकता है पर वह सचाई तक नही पहुंच सकता। चेतना के अनेक स्तर __ सुख-दुःख के प्रति हमारा दृष्टिकोण मिथ्या होता है, हमारा मन इन्द्रिय विषयों के प्रति आकर्षित होता है-यह हमारी सुषुप्ति-स्तरीय चेतना है । हमारा मन पदार्थ तथा हाथ की अंगुलियों, आंखों और वाणी के साथ बाहर आने वाली विद्युत् से सम्मोहित होता है-यह हमारी भावना-स्तरीय चेतना है। हमारा मन पदार्थ और व्यक्ति के साथ चिंतन पूर्वक संबंध स्थापित करता है। हेय को छोड़ने और उपादेय को स्वीकार करने की बात हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ww
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy