SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चेतना के स्तर क्रोध का कारण है काम यह सारा इन्द्रिय की कामना तंरग के कारण होता है । कामना की तरंग फिर चाहे आंख की हो, जीभ की हो या कान की हो । तरंग उठते ही आदमी बेभान हो जाता है, विवेक शून्य हो जाता है, विवेक की चेतना लुप्त हो जाती है । काम इन्द्रियों में पैदा होता है। काम के साथ-साथ क्रोध आता है । यदि काम नहीं होता तो क्रोध भी नहीं होता । क्रोध पैदा होने का सबसे बड़ा कारण है काम काम की पूर्ति में कोई बाधा आती है तो तत्काल गुस्सा आ जाता है । कामना की अपूर्ति की पहली प्रतिक्रिया है क्रोध । काम क्रोध को पैदा करता है । बुद्धि : काम कामना पहले इन्द्रिय में पैदा होती है । फिर वह मन पर उतर कर मानसिक बन जाती है । इन्द्रियों की कामना सीमित होती है, मानसिक कामनाएं असीम बन जाती हैं। इन्द्रियों का क्षेत्र छोटा है । मन का क्षेत्र बहुत बड़ा है इसलिए मानसिक कामनाओं का कहीं अन्त ही नजर नहीं आता, वह अनन्त बन जाता है। आंख देख सकती है पर एक सीमित क्षेत्र को । मन की कोई सीमा नहीं है । वह एक क्षण में विश्व में घूम कर आ सकता है । उसके लिए कुछ भी अगम्य नहीं है । समुद्र या पर्वत उसके बाधक नहीं बनते। उसके लिए गत्यवरोधक कोई पदार्थ है ही नहीं । वह अबाध संरचण कर सकता है । यदि बुद्धि चाहे तो उस पर रोक लगा सकती है । बुद्धि में शक्ति है कि वह चाहे तो मन को गतिमान् करे और न चाहे तो उसे स्थिर कर दें पर जब कामना बुद्धिगत हो जाती है तब वह अधिक जटिल बन जाती है । उच्छृंखलता का कारण २५१. इन्द्रिय काम, मानसिक काम और बौद्धिक काम - ये तीनों हमारी वृत्तियों में उच्छृंखलता पैदा करते हैं । काम या कामना अपने आप सामने नहीं आती । वह इन्द्रिय के माध्यम से, मन और बुद्धि के माध्यम से सामने आती है । इन तीनों को माध्यम बनाकर काम अपनी प्रवृत्ति करता है । जब तक यह काम नहीं बदलता तब तक समता की दृष्टि नहीं जागती । प्रेक्षा का अर्थ है - अपने भीतर रहे हुए काम और क्रोध को देख लेना, जान लेना और यह अनुभव कर लेना कि जो कुछ भी अनिष्ट हो रहा है, बुरा आचरण हो रहा है, जानते हुए भी पाप का आचरण हो रहा है, वह सब काम वासना के कारण हो रहा है | फायड ने कहा- हमारी सारी प्रवृत्तियों का मूल है - सेक्स या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy