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चित्त
૨૪હ.
निरालम्बन ध्यान : पांच अंग
निरालम्बन ध्यान की कुछ पद्धतियां हैं। उन्हें जान लेने पर उसका अभ्यास सहज हो जाता है। उनका पहला अंग है-प्रयत्न की शिथिलता । सालम्बन ध्यान में जैसे शरीर, वाणी और श्वास का प्रयत्न शिथिल किया जाता है, उसी प्रकार निरालम्बन ध्यान में मन का प्रयत्न भी शिथिल कर दिया जाता है । निरालम्बन ध्यान वस्तुतः अप्रयत्न की स्थिति है।
दूसरा अंग-निरभ्र आकाश की ओर टकटकी लगाकर देखते जाएं। थोड़े समय में चित्त विचार शून्य हो जाएगा।
तीसरा अंग-केवल कुम्भक का अभ्यास करें। मन विचार-शून्य हो जाएगा।
चौथा अंग-मानसिक विचारों को समेटकर हृदय-चक्र की ओर ले जाएं। फिर गहराई में उतरने का अनुभव करें। ऐसा करते ही चित्त विचारशून्य हो जाएगा।
पांचवां अंग-आत्मा या चैतन्य केन्द्र की धारणा को दृढ़ कर उसके सान्निध्य का अनुभव करें। वह सहज शान्त और निर्विचार हो जाएगा।
इस प्रकार अनेक पद्धतियां हैं, जिनके द्वारा निर्विचार ध्यान को सुलभ बनाया जा सकता है किन्तु उन सब में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पद्धति हैअप्रयत्न-प्रयत्न का विसर्जन ।
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