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चित्त
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जाता है और ज्ञान केन्द्र कमजोर होता जाता है । यह है लौकिक चित्त की प्रक्रिया |
लौकिक चित्त का कार्य
लौकिक चित्त सदा कामना को पुष्ट करता है, कामकेन्द्र को सिंचन देता है, बलवान् बनाता है । यह एक तथ्य है- मनुष्य के जीवन में कामना का जितना तनाव होता है उतना तनाव किसी का भी नहीं होता । यह मनोवैज्ञानिक दृष्टि से निरन्तर रहने वाला तनाव है । क्रोध का आवेग कभीकभी होता है, लोभ की चेतना कभी-कभी होती है किन्तु काम की चेतना निरन्तर रहती है । जब हमारी चेतना कामकेन्द्र की ओर अधिक बहने लगती है तब सहज ही ज्ञानकेन्द्र की शक्तियां क्षीण होती जाती हैं । साधना से इसे उलटना होता है । जो व्यक्ति अपने ज्ञान का विकास चाहता है, अपनी शक्तियों का विकास चाहता है, निर्मलता चाहता है, उसे चेतना के प्रवाह को उलटना होगा, मोड़ना होगा, चित्त को ऊपर की ओर ले जाना होगा । ऊपर देखो, ऊपर की ओर देखो। इसका अर्थ यह कि मोक्ष की ओर देखो । मोक्ष बहुत दूर है । इतने दूर क्यों जाएं ? निकट में देखें और मन की गति को मस्तिष्क की ओर कर दें । प्राण की धारा के प्रवाह को मोड़ दें । उसकी गति को बदल दें। उसे ऊपर की ओर करें । ज्ञानकेन्द्र की ओर मोड़ें। इससे ज्ञानकेन्द्र को सिंचन मिलेगा । जब ज्ञानकेन्द्र को सिंचन मिलेगा तब ज्ञान पुष्ट होगा । साधना सहज रूप में सफल होती जाएगी । ज्ञानकेन्द्र पुष्ट तब होता है जब हमारी ऊर्जा ज्ञानकेन्द्र में प्रवाहित होती है । यह ऊर्जा जो ऊपर की ओर जाती है उसे कुंडलिनी का जागरण कहें या विशिष्ट ज्ञान की उपलब्धि कहें कुछ भी कहा जा सकता । ज्ञान के सारे केन्द्र मस्तिष्क में हैं । शक्ति के सारे स्रोत मस्तिष्क में हैं । शक्ति स्रोतों के जागने का अर्थ है— लोकोत्तर चित्त का जागरण ।
भी हो सकता हैं।
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सत्य की खोज : चित्त की स्थिरता
प्रेक्षा से अप्रमाद ( जागरूकभाव) आता है । जैसे-जैसे अप्रमाद बढ़ता है, वैसे-वैसे प्रेक्षा की सघनता बढ़ती है । हमारी सफलता एकाग्रता पर निर्भर है । अप्रमाद या जागरूकभाव बहुत महत्त्वपूर्ण है । शुद्ध उपयोग - केवल जानना और देखना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है किंतु इसका महत्व तभी सिद्ध हो सकता है जब यह लम्बे समय तक निरन्तर चले । देखने और जानने की क्रिया में बार-बार व्यवधान न आए; चित्त उस क्रिया में प्रगाढ़ और निष्प्रकंप हो जाए । अनवस्थित, अव्यक्त और मृदु चित्त ध्यान की अवस्था का निर्माण नहीं कर सकता । पचास मिनट तक एक आलम्बन पर चित्त की प्रगाढ़ स्थिरता का अभ्यास होना चाहिए। यह सफलता का बहुत बड़ा रहस्य है । इस अवधि के
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