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________________ २४६ चित्त और मन हिमालय पर एक झोपड़ी में बैठा है, पास में कोरा कंबल है और ताप के लिए धूनी है, बड़ा सुख का अनुभव करता है। एक आदमी जिसके पास बड़ा प्रासाद है और सारे सुख के साधन हैं, बाहर से सर्दी-गर्मी नहीं आ रही है पर भीतर में इतनी सर्दी और गर्मी है कि उसका कहीं अन्त ही नहीं आता। प्रश्न है-दुःख कहां से आता है ? दुःख है चंचलता में। जिसने अपनी चंचलता को कम कर दिया उसके लिए दुःख कम हो गए। जिसने चंचलता को कम नहीं किया, उसके लिए दुःख ही दुःख है। जब दु:ख होता है और चित्त असमाहित होता है, विक्षिप्त होता है तब आदमी अनैतिक बन जाता है। उसके लिए अनैतिकता अनिवार्य बन जाती है । दुःख कैसे मिटाएं ? जिसको दुःख मान रखा है, उसे कैसे मिटाएं ? मनुष्य को बहुत धन चाहिए । चित्त में एक चंचलता पैदा हो गई कि धन कमाना है, समृद्ध बनना है पर प्रश्न है-कैसे बने ? पुरुषार्थ से तो जितना आता है उतना ही आता है। तब जैसे-तैसे बनने की एक भावना पैदा होती है विक्षिप्त चित्त के द्वारा। यह बिन्दु है, जहां से साधन-शुद्धि का विचार समाप्त हो जाता है। कोई साधन-शुद्धि नहीं रहती। लौकिक चित्त : लोकोत्तर चित्त हमारा चित्त दो प्रकार का है-लौकिक चित्त और लोकोत्तर चित्त । जो चित्त संज्ञा में फंसा हुआ होता है, संवेदन में उलझा हुआ होता है, वह है लौकिक चित्त । जो चित्त संज्ञाओं से दूर है, उनकी पकड़ से मुक्त है, वह है लोकोत्तर चित्त । जिसे लोकोत्तर चित्त का लाभ होता है, वह नो-- संज्ञोपयुक्त बन जाता है। एक ही शक्ति दोनों में काम करती है । वही ऊर्जा, वही प्राण और वही शक्ति लौकिक चित्त के काम आती है और वही ऊर्जा, वही प्राण और वही शक्ति लोकोत्तर चित्त के काम आती है। __शरीर में दो मुख्य केन्द्र हैं। एक है काम-केन्द्र और दूसरा है ज्ञानकेन्द्र । नाभि के नीचे का स्थान कामकेन्द्र है, वासनाकेन्द्र है । मस्तिष्क है ज्ञानकेन्द्र । हमारे शरीर में ऊर्जा का एक ही प्रवाह है। जहां मन जाएगा, वहां ऊर्जा जाएगी। जहां मन जाएगा वहां प्राण जाएगा। यदि हमारा मन, हमारा चिन्तन कामकेन्द्र की ओर ज्यादा आकर्षित होता है तो उसे बल मिलेगा, शक्ति मिलेगी। प्रकृति का यह अटल नियम है कि जिसे सिंचन मिलता है वह पुष्ट होता है। जिसे सिंचन नहीं मिलता, वह सूख जाता है, नष्ट हो जाता है। जिसे सिंचन प्राप्त है, वह बढ़ता है, फलता-फूलता है। जिसे सिंचन प्राप्त नहीं है, वह टूट जाता है, ठूठ मात्र रह जाता है। यदि कामकेन्द्र की ओर हमारी ऊर्जा का प्रवाह मुड़ जाता है, हमारी सारी प्राणशक्ति उसी ओर प्रवाहित होने लग जाती है तब कामकेन्द्र बलवान होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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