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चित्त
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अन्तश्चित्त हमारी सारी वत्तियों का मूल स्रोत है। यह चित्त निर्मल होता है तो इसका प्रभाव भीतर तक पहुंचता है। यह एक प्रकार से 'फीडबेक' पद्धति है। भाव शुद्ध होता है तो वह भीतर तक प्रभाव डालता है और अन्तर में भी शोधन शुरू हो जाता है। जो संस्कार चित्त है, जो चित्तों का निर्माण कर रहा है, वह निर्माण-चित्त भी इस भावशुद्धि के द्वारा ही पवित्र होता है। हमारा मूल लक्ष्य है--निर्माण-चित्त को शुद्ध बनाना। यह ध्यान के विभिन्न प्रयोगों से हो सकता है। ध्यान के प्रयोग इसीलिए होते हैं कि चित्त पर मैल न जमे, चित्त शुद्ध रहे । जब यह शुद्ध रहता है तब भीतर तक पवित्रता का क्रम चलता है। एक पूरा वलय बनता है। यह कार्य कारण की शृंखला है । जो भीतर से आ रहा है, उसे हम बाहर से फीड कर रहे हैं। राग: विराग
चित्त को अशुद्ध बनाता है राग। जितना राग होता है, उतना ही चित्त अशुद्ध रहता है। इसलिए चित्त की शुद्धि करने वाले व्यक्ति को सबसे पहले विराग का अभ्यास करना होता है। वैराग्य सहज उपलब्ध नहीं होता तो फिर अभ्यास के द्वारा वैराग्य किया जाता है। वैराग्य-भावना चित्त शुद्धि का प्रमुख साधन है । भगवान् महावीर ने कहा-खणमेत सोक्खा बहुकाल दुक्खा । जितनी कामनाए, लालसाएं, और आकांक्षाएं चित्त में जागती हैं, ये क्षण भर के लिए सुख देती हैं। ये प्रवृत्तिकाल में सुख देती हैं किन्तु परिणाम काल में दुःख देती हैं। प्रवृत्ति का क्षण छोटा होता है किन्तु परिणाम का क्षण बहुत बड़ा होता है । जैसे एक छोटी-सी भूल का बहुत बड़ा परिणाम होता है वैसे ही कामना की भूल का छोटा-सा क्षण बहुत बड़ा बन जाता है परिणाम काल में । सुख का अनुभव थोड़ा होता है और दुःख का अनुभव बहुत ज्यादा होता है। इस प्रकार का अनुचितन, इस प्रकार की भावना, बार-बार का यह अभ्यास करते-करते पदार्थ के प्रति राग कम होने लगता है और मन में वैराग्य का अंकुर फूटने लगता है। विक्षिप्त चित्त : समाहित चित्त
प्रश्न होता है-दुःख क्यों है ? कब तक है ? योग के आचार्यों ने दो शब्द दिये-समाहित चित्त और विक्षिप्त चित्त । विक्षिप्त चित्त के लिए ये सारे दुःख होते हैं और समाहित चित्त को कोई दुःख नहीं होता । दुःख की अवस्था पैदा होती है विक्षिप्त चित्त में और जब चित्त समाहित होता है तो दुःख समाप्त हो जाता है। अभाव हो सकता है पर दुःख नहीं हो सकता । समस्या हो सकती है पर दुःख नहीं हो सकता। समस्या होना एक बात है और दुःख का संवेदन होना बिलकुल दूसरी बात है । अभाव होना एक बात है और उसका संवेदन होना बिलकुल दूसरी बात है। ऐसा आदमी जो
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