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________________ २४२ चित्त और मन अनुभव होने लग जाता है। आगम के आलोक में चित्त और मन एक जैन आगम है-सूत्रकृतांग। बारह अंग-आगमों में यह दूसरा बंग-आगम है। उसमें चित्त और मन को और गहराई से समझने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उल्लेख प्राप्त होता है । सूत्रकृतांग सूत्र में कहा गया एक व्यक्ति न सोच रहा है, न बोल रहा है, न प्रवृत्ति कर रहा है, और न स्वप्न देख रहा है। उस स्थिति में भी उसके कर्मबन्ध हो रहा है, नए संस्कारों का निर्माण हो रहा है। यह कथन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके आधार पर मन और चित्त को पृथक-पृथक् समझने में सुविधा हो सकती है। सामान्यतः यह माना जाता है कि मन की चंचलता से कर्म-बंध होता है। प्रवृत्ति और स्वप्नदर्शन भी कर्मबन्ध के घटक हैं किन्तु जहां प्रवृत्ति नहीं है, स्वप्न-दर्शन नहीं है, मन का और वचन का कार्य नहीं है, वहां कर्मबंध कैसे हो सकता है, यह एक प्रश्न है। सूत्रकृतांग के अनुसार इस अवस्था में भी कर्मबन्ध होता है। सामान्य उक्ति भी इसी का समर्थन करती है-'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।' यह भी स्थूल बात है । इसको समझने के लिए हमें स्थूल जगत् को पार कर, स्थूलचित्त को पार कर सूक्ष्म जगत् या सूक्ष्म चित्त की यात्रा करनी होगी। सूक्ष्म चित्त : चार प्रकार हमारे अन्तर-जगत् में जो संस्कार हैं, कर्मचित्त या अध्यवसाय है, वह निरंतर सक्रिय रहता है। मन के होने या न होने पर भी वह सक्रिय बना रहता है। उस सूक्ष्मतम चित्त या अध्यवसाय को चार भागों में विभक्त किया गया है१. मिथ्यात्व अध्यवसाय । ३. प्रमाद अध्यवसाय २. अविरति अध्यवसाय ४. कषाय अध्यवसाय इनका हमारे स्थूल चित्त के साथ कोई संबंध नहीं होता। संबंध बाद मैं बनता है पर इनके संचालन में स्थूल चित्त का कोई हाथ नहीं है। जब स्थलचित्त का कोई दायित्व नहीं है तब फिर मन का प्रश्न ही नहीं उठता। यह आन्तरिक चेतना की होनेवाली प्रवृत्ति है । मनोविज्ञान में परिकल्पित बचेतन मन से इसकी कुछ तुलना की जा सकती है। आंतरिक प्रवृत्तियां ये चार प्रकार के चित्त सतत सक्रिय रहते हैं, निरंतर गतिशील रहते हैं। मिथ्यात्व अध्यवसाय से जो प्रकंपन होते हैं, वे दृष्टिकोण को भ्रांत बनाते हैं । यह चित्त का पहला प्रकार है । चित्त का दूसरा प्रकार हैथविरति । इसको तृष्णा कहा जाता है। तृष्णा उत्पन्न होती है, निरंतहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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